Pratham golmej sammelan ki kuchh rochak baaten - Indian heroes

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Thursday, 15 December 2016

Pratham golmej sammelan ki kuchh rochak baaten

               
पहला गोल मेज सम्मेलन नवम्बर 1930 में आयोजित किया गया जिसमें देश के प्रमुख नेता शामिल नहीं हुए

       पहला गोल मेज सम्मेलन नवम्बर 1930 में आयोजित किया गया जिसमें देश के प्रमुख नेता शामिल नहीं हुए, इसी कारण  अंतत: यह  बैठक निरर्थक  साबित हुई। यह आधि कारिक तौर पर जॉर्ज पंचम ने १२ नवम्बर १९३० को प्रारम्भ किया और इसकी अध्यक्षता ब्रिटेन के प्रधानमंत्री, रामसे मैकडॉनल्ड  ने की। तीन ब्रिटिश  राजनीतिक  दलों का प्रतिनिधित्व सोलह प्रतिनिधियों द्वारा किया गया। अंग्रेजों द्वारा शासित भारत से ५७ राजनीतिक नेताओं और रियासतों से १६ प्रतिनिधियों ने भाग लिया। हालांकि, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और व्यापारिक नेताओं ने सम्मलेन में भाग नहीं लिया। उनमें से कई नेता सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग लेने के कारण जेल में थे।

                       जनवरी 1931 में गाँधी जी को जेल से रिहा किया गया। अगले ही महीने वायसराय के साथ उनकी कई लंबी बैठके हुईं। इन्हीं बैठकों के बाद गांधी-इरविन समझौते पर सहमति बनी जिसकी शर्तो में सविनय अवज्ञा आंदोलन को वापस लेना, सारे कैदियों की रिहाई और तटीय इलाकों में नमक उत्पादन की अनुमति देना शामिल था। रैडिकल राष्ट्रवादियों ने इस समझौते की आलोचना की क्योंकि गाँधी जी वायसराय से भारतीयों के लिए राजनीतिक स्वतंत्रता का आश्वासन हासिल नहीं कर पाए थे। गाँधी जी को इस संभावित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए केवल वार्ताओं का आश्वासन मिला था।

  **  सहभागी
-मुस्लिम लीग: मौलाना मोहम्मद अली जौहर, मोहम्मद शफी, आगा खान, मोहम्मद अली जिन्ना, मोहम्मद ज़फ़रुल्ला खान, ए के फजलुल हक.
-हिंदू महासभा: बी एस मुंजे और एम. आर. जयकर
-उदारवादी: तेज बहादुर सप्रू, सी. वाय. चिंतामणि और श्रीनिवास शास्त्री
-सिख: सरदार उज्जल सिंह
-केथोलिक (इसाई): ए. टी. पन्नीरसेल्वम
-दलित वर्ग ("अछूत" लोग) : बी.आर.अम्बेडकर
-रियासतें: अक़बर हैदरी (हैदराबाद के दीवान), मैसूर के दीवान सर मिर्ज़ा इस्माइल, ग्वालियर के कैलाश नारायण हक्सर, पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह, बड़ोदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय, जम्मू और कश्मीर के महाराजा हरि सिंह, बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह, भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खान, नवानगर के के. एस. रणजीतसिंहजी, अलवर के महाराजा जय सिंह प्रभाकर और इंदौर, रीवा, धौलपुर, कोरिया, सांगली और सरीला के शासक।
       एक अखिल भारतीय महासंघ बनाने का विचार चर्चा का मुख्य बिंदु बना रहा। सम्मेलन में भाग लेने वाले सभी समूहों ने इस अवधारणा का  समर्थन किया।  कार्यकारिणी सभा से व्यवस्थापिका सभा तक की जिम्मेदारियों पर चर्चा की गई और बी.आर. अम्बेडकर ने अछूत लोगों के लिए अलग से राजनीतिक प्रतिनिधि की मांग की।

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