चारिका करते समय भगवान बुद्ध ने उन भिक्खुओ को, जो साथ चल रहे थे,यह उपदेश दिया…
भिक्खुओ ! इस संसार मे चार तरह के लोग है।
1) जिसने न अपना भला किया और न किसी दूसरे का भला किया,
2) जिसने दूसरों का भला किया, किन्तु अपना भला नहीं किया,
3) जिसने अपना भला किया, किन्तु दूसरों का भला नहीं किया तथा
4) जिसने अपना भी भला किया तथा दूसरों का भी भला किया।
जिस आदमी ने न अपना भला करने का प्रयास किया और न दूसरों का भला करने का प्रयास किया वह स्मशान की उस लकड़ी की तरह है जो दोनों सिरो पर जल रही है और जिसके बीच मे मैल लगा है। वह न गाँव मे ही जलावन के काम आती और न जंगल मे। इस तरह का आदमी न संसार के किसी काम का होता है, न अपने किसी काम का।
जो अपनी हानी करके दूसरों का उपकार करता है ,वह दोनों मे अधिक अच्छा है।
लेकिन भिक्खुओ ! चारो तरह के आदमियो मे सबसे अच्छा तो वही है, जिसने दूसरों का भला करने का भी प्रयास किया है और अपना भला करने का भी प्रयास किया है।
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