पो चीन के तांग राजवंश में उच्चाधिकारी और कवि था. एक दिन उसने एक पेड़ की शाखा पर बैठे बौद्ध महात्मा को धर्मोपदेश देते हुए देखा. उनके मध्य यह वार्तालाप हुआ:
पो: “महात्मा, आप इस पेड़ की शाखा पर बैठकर प्रवचन क्यों दे रहे हैं? ज़रा सी भी गड़बड़ होगी और आप नीचे गिरकर घायल हो जायेंगे!”
महात्मा: “मेरी चिंता करने के लिए आपका धन्यवाद, महामहिम. लेकिन आपकी स्थिति इससे भी अधिक गंभीर है. यदि मैं कोई गलती करूंगा तो मेरी ही मृत्यु होगी, लेकिन शासन के इतने ऊंचे पद पर बैठकर आप कोई गलती कर बैठेंगे तो सैंकड़ों-हजारों मनुष्यों का जीवन खतरे में पड़ जाएगा”.
पो: “शायद आप ठीक कहते हैं. अब मैं कुछ कहूं? यदि आप मुझे बुद्ध के धर्म का सार एक वाक्य में बता देंगे तो मैं आपका शिष्य बन जाऊँगा, अन्यथा, मैं आपसे कभी मिलना नहीं चाहूँगा”.
महात्मा: “यह तो बहुत सरल है! सुनिए. बुद्ध के धर्म का सार यह है, ‘बुरा न करो, अच्छा करो, और अपने मन को शुद्ध रखो’.”
पो: “बस इतना ही!? यह तो एक तीन साल का बच्चा भी जानता है!”
महात्मा: “आपने सही कहा. एक तीन साल के बच्चे को भी इसका ज्ञान होता है, लेकिन अस्सी साल के व्यक्ति के लिए भी इसे कर सकना कठिन है.”
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