डॉ. अंबेडकर का सबसे प्रिय शौक पुस्तकें पढ़ना और लिखना था । वे बहुत पढाकू थे । जब भी विदेश जाते तो कईं ट्रंक भर कर पुस्तकें लाते । अपने दोस्तों को पत्र लिखकर भी देश-विदेश से पुस्तकें मंगवाते रहते थे | अपना अधिकतर पैसा पुस्तकों की खरीद पर खर्च करते थे । पुस्तकें पढ़ने में अधिक से अधिक समय लगाते थे, एक भी क्षण व्यर्थ नष्ट नहीं करते थे। उनके पुस्तकालय में लगभग 50 हजार पुस्तकें थी । यह भारत में किसी भी व्यक्ति का सबसे बडा निजी संग्रह था।
डॉ. आंबेडकर एक जाने-माने लेखक थे । वे एक दार्शनिक भी थे । वे अत्यंत दृढ़ता के साथ सत्य की खोज करते और अपनी पुस्तकों में प्रकाशित करवाते । उनकी लगभग सभी पुस्तकों के कई-कई संस्करण छपते और खूब बिकते | जो कोई भी उनकी पुस्तके पाता, वह उनकी निर्भिक्ता, स्पष्टवादिता व विद्वता से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता था । उनकी को पुस्तकों ने राजनेतिक व सामाजिक क्षेत्रों में व्यापक हलचल पैदा की । बाबा साहब ने पीपल्स एजुकेशन सोसायटी की स्थापना की । सर्वप्रथम सोसायटी ने बम्बईं से बुद्ध के बचपन के नाम पर ‘सिद्धार्थ’ कॉलेज खोला । औरंगाबाद में मिलिंद विश्वविधालय की स्थापना की । जिस महाड़ मेँ बाबा साहब को तालाब से पानी का एक बूँद लेने के लिए मनाहीं थी, उस महाड में सोसायटी की ओर से डॉ. अंबेडकर कॉलेज खोला गया | वॅडाला में भी डा. आंबेडकर कलेज आँफ कॉमर्स खोला गया । लाखों विद्यार्थी इन शिक्षण संस्थाओं से लाभ उठा रहे हैं । हिंदुओं ने डा. अंबेडकर को घृणा दी और डॉ. अंबेडकर ने उन्हें विद्या-दान दिया । यह है उनकी महानता, विशालता और उदारता ।
No comments:
Post a Comment