समुद्र किनारे की एक बहादुर कौम कुरुक्षेत्र महायुद्ध का समराध धाता श्री कृष्ण यह सौराष्ट्र से तहाँ गए यदी यह पाँच हजार वर्ष पूर्व का सौराष्ट्र की जिसमें उस समय की मेरुक (महेर) कोम यदि आज वह बरडा प्रदेश में जस रही है समुद्र तीर की वह सुवीर कोम का ऐतिहासिक प्रकरण यदि इतिहास की कबर में समा गए हैं। बरडा प्रदेश वासी पोरबंदर शहर से उन्नाीस मील की दुश श्री वझात भकत से प्रसिद्धि प्राप्त किया हुआ वीसीवाड़ा गाँव मगर सिको पौराणिक यात्री गण मुख्य द्वार का मूल द्वारका मानते हैं, वही विंझात भकत का जन्म मरहे, महोआ, आहिर, रबारी यह खास है बहोतर सी बरडा प्रदेश के सताधिस थे और जिस की बहादुरी से और दान भक्ति कहानियों का वावरणे आज दिन तक गज रहा है। ऐसी महेर प्रजा है हाल यदि जेठवा राणा की ध्वज छाया में अवशेष तुल्य जीवित है लेकिन उनका बड़ा सुडोल शरीर जलद और जुस्सेदार जोरदार प्रकृति और वीरता रंगीत जिसकी आदतें और तिरंदाजी धनुषबाण शास्त्र विद्या में अति निपुणता युक्त गति यह प्रजा एशिया में उतर आएा हैं। यूँ कहते हैं मो रायनोद ने विदित कि हुई यदि जाट जाति वह जेठवा होंगे और मैत्रक जाति वे मेहर होंगे और मोरायनोटने यह मेरूके जाति को नाविक भी कहते हैं। इलीयंट नाक का लेखक यह मेरुका कोम का थाना दान्युब सरिता के तीर होने का लिखा है। गुप्तवंश के राजाओं का अध: पतन काल के प्रसंग में मीहीर कोम का उल्लेख है। राजा बुद्ध गुप्त राज्य शासन चलाने में असक्त था। राजतंत्र शिथिल हो गया। उस अरसे में प्राणवान और बहादुर प्रजा हमला करके सौराष्ट्र में गुप्त वंशों राजाओं को निकाल दिए और राजतंत्र स्वहस्तक कर दिया। यूँ दिखता है कि वियॅवान प्राणवान बहादु प्रजाा ने यदि वह वल्लभीपुर में ताम्बपत्र में लिखा हुआ यह सौराष्ट्र निवासी बने हुए मैत्रक मन्डलोही होना चाहिए। मैत्रख और महार का अर्थ सूर्य होता है मेहर कोम भी सूर्य उपासक है। बरडा विभाग में बहुत सूर्य मंदिर है। यह सूर्य दिवालय महेर कोम के ही स्थापित किए हुए हैं। यदि महेर और जेठवा दोनों ही मकर ध्वज के यदि पुत्र हो तो मेहर और जेठवा दोनों एक ही कोम होनी चाहिए। इ.स. 460 के अरसे बाद मेहर प्रजा सौराष्ट्र में आकर रहने लगी होगी। ऐसा ज्ञात होता है कि यह मेहर प्रजा अनुपम शक्तिशाली थे। यदि ऐसा न होता तो यह मैत्रक मंडल के वल्लभीपुर के लेख में मैत्रक संभावित न हो। क्योंकि मेहरों की स्वतंत्र सत्ता होनी चाहिए। मेहर लोकों ने सौराष्ट्र के राज्यों को इ.स. 770 विस्तार ज्यादा में सर किया और राज्य का होने से मेहर शासन के दो विभाग बनाए। एक बरडा जिला की सत्ता और दूसरी गाहिलवाड़ जिला की सत्ता। ऐसे सत्ता मे दो विभाग हुए। इ.स. 847 समय में मध्य गुजरात में यदि मेहर कोम ने दावपेचक दौरा किया ता संचार किया था ऐसा परिचित होता है। इ.स. 860 में असर में मेहर प्रजा ने घुमली पर सर्वोत्कृष्ट राजसत्ता स्थापित की थी ऐसा विदित होता है और उस समय मे मगर यह मेहर कोम सौराष्ट्र में वैभव और विजय के शिखर के रूप में थे। इ.स. 604 के समय में मेहर प्रजा का सौराष्ट्र में स्वतंत्र राज्य शासन था। ऐसा मालूम होता है कि घुमली का राज्य समन होने से यदि यह मेहर कोम ने श्रीनगर और कोंटेला पोरबंदर के निकट में आकर अपना राज्य कायम किया। इ.स. 712 में अरबों ने सिंध पर चड़ाई करी थी। उस समय भी यह सौराष्ट्र की मेहर बलवान कोम ने वह अरबों सैन्य का सामना किया था यह संभव है।
चित्तौड़ मेवाड़ का महाराणा लाखा के शरणागत मेरतीया मेहर का आश्रय के लिया। राणा ने रहने को बेदनुर गाँव जागिर में दिया और दूसरे यदी चले गए। वह मेरतीया महेर बरडा डुंगर के समिट आब से यदी यह मेरतीया भी मेहर होंगे ऐसा संभव है।
गोहिल राजपूत यही मेहर गोहिल साथ के सन्मध से हुए हो क्योंकि गोहिल महेर विवाह व्यवहार हुआ यह उपरोक्त है। गोहिल अपने को सालीवाहन वंशज मानते हैं और यह सूर्यवंशी हैं। गोहिल राजपूत मारवाड़ से भाग कर सौराष्ट्र में जूनागढ़ के खेंगार के पीछे जो सेजकजी गोहिल सैन्य का सरदार था उसने अपनी पुत्री को रा खेंगार के साथ विवाह किया। और तिस पीछे रा खेंगार ने सेजकजी को जागीर दी। उस पठे में सेजकजी गोहिल ने उनके नाम का गाँव सेजकपुर आबाद किया। वह सेजकजी का भाई वीसाजी ने महर कन्या के साथ लग्न संबंध किया और मेहर कोम में मिल गए। वह जाति के यदी मेहर गोहिल मेहर कहलाए। मेर लोग अपने को राजपूत और जेठवा क्षत्रीय मानते हैं और मेहर ओर जेठवा एक ही हैं, यह कथन सत्य। जेठवा क्षत्रिय मेहर कन्याओं के साथ लग्न ग्रंथीत होते ही तो मगर इतना ही नहीं लेकिन जेठवा आहिर ओर काठी की पुत्रियों के साथ भो लग्न करते ऐसा टोड वेस्टर्न इंडिया में लिखा है कि जेठवा और मेहर यदि एक ही हो तो मीहिर ओर मेहर अगर समय व्यतीत यदि वह सातसी प्रजा होगा और वह सर्व समुदाय में यदी बलवान व सौर्यवान को राजा रूप स्वीकृत कर शासक नियुक्त किया होगा। शासक विभाग बढ़ता गया यदि जिससे शासक और शासित विभाग जेठवा और मेहर भिन्ना भिन्ना हुए। जेठवा वंश को शासन इस बनाने में यह मेहर कोम ने अमूल्य हिस्सा दिया है। कर्नल बार्टन दूसरे स्थान कहेता के मेहर यह जेठवा ही है।
घुमली महेर लोगों का ओर जेठवा वंश का पाँच सतक तक पाटनगर था। मेहर लोगों ने वल्लभीपुर के पीछे सौराष्ट्र के दक्षिण भाग पर अपना शासन चलाने के लिए घुमती को पाटगर बनाया था। इ.स. का दसवाँ शतक तक घुमली जेठवाओं की राजधानी होनी चाहिए। ऐसे कितने दान पत्रों पर से मालूम होता है। घुमली की कारीगरी कला के कितन अवशेष यही राजकोट अजायबघर में है।
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