*शौर्य दिवस का इतिहास* - Indian heroes

Post Top Ad

Sunday 8 January 2017

*शौर्य दिवस का इतिहास*


11 मार्च सन 1689 को  पेशवाओ ने हमारे शम्भाजी महाराज को खत्म कर उनके शरीर के अनगिनत टुकड़े कर तुलापुर नदी में फेक दिये थे और कहा कि जो भी इनको हाथ लगायेगा उसका क़त्ल कर दिया जायेगा। काफी समय तक कोई भी आगे नहीं आया पर महार जाति के एक पहलवान ने हिम्मत दिखाई और आगे आया जिसका नाम गणपत पहलवान था , वह शम्भाजी महाराज के सारे शरीर के हिस्सों को इकठ्ठा करके अपने घर लाया और उसकी सिलाई कर के मुखाअग्नि दी ।
          शम्भाजी  महाराज की समाधी आज भी उसी महारवाडे इलाके में स्थित है। ये सूचना मिलते ही पेशवाओ ने गणपत महार पहलवान का सर कलम कर दिया और समुची महार जाति को दिन में गाँव से बहार निकलने पर पाबन्दी लगा दी और कमर पे झाड़ू और गले में मटका डालने का फरमान लागू कर दिया था और पुरे पुणे शहर में यह खबर फैला दी कि गणपत महार पहलवान देवतुल्य हो गया है इसलिए वो भगवान की भेट चढ़ गया!   ।
          शम्भाजी महाराज की मृत्यु के बाद महार जाति के लोगो पर खूब अत्याचार इन पेशवाओ द्वारा  किये जाने लगे थे।महार जाति शुरू से ही मार्शल जाति थी , पर पेशवाओ ने अब इन लोगो पर मार्शल लॉ (सेना में लड़ने पर रोक ) लगा दिया था।
    महार अब इनके जुल्म से तंग आ चुके थे और अपने स्वाभिमान और अधिकार के लिए आंदोलन करने की सोच रहे थे …..।
        उस दौरान अंग्रेज भारत में आये ही थे पर वो पेशवाओ की बलशाली सेना पर विजय नहीं कर पा रहे थे , तभी महार जाति का एक नवयुवक सिद्धनाक पेशवाओ से मिलने गया और कहने लगा की वैसे तो हमारी अंग्रेजो की ओर से लड़ने की कोई इच्छा नहीं है मगर तुम हमारे सारे अधिकार और सम्मान हमे दे देते है तो हम अंग्रेजो को यहाँ से भगा देंगें , इस पर पेशवाओ ने कहा की तुम्हे यहाँ सुई के बराबर भी जमीन नहीं मिलेगी। यह सुनते ही सिद्धनाक ने पेशवा को चेतावनी देते हुए कहाँ की अब तुमने अपनी मृत्यु को स्वयं ही निमंत्रण दे दिया है , और अब तुम्हे कोई नहीं बचा सकता , अब हम रण भूमि में ही मिलेंगे ।
अब सिद्धनाक अंग्रेजो से मिला और उनसे कहने लगा कि तुम हमे अपने अधिकार और सम्मान लौटा दो , तो हम आपकी तरफ से इन पेशवाओ से लड़ने के लिए तैयार है ।
    अंग्रेजो ने सिद्धनाक की बाते मान ली ।
   तब सिद्धनाक 500 महार सैनिको के साथ  शम्भाजी महाराज की समाधी पर जाता है और महाराज की समाधी को नमन करते हुए शपथ लेता है कि हम शाम्भाजी महाराज के खून का बदला जरूर लेंगे। और उसके बाद सात दिन तक चले युद्ध में भूखे प्यासे रहकर महारो के 500 वीरो ने पेशवाओ के 28000 सैनिकों के टुकड़े – टुकडे करके उनको नेस्तानाबूत कर दिया था
     वो दिन था 01 जनवरी  1818 इसलिए ये दिन “शौर्य दिवस ” नाम से जाना जाता  है ।
  जहाँ स्वयं बाबा साहेब डॉ भीम राव आंबेडकर जी ने इन महार वीरो के लिए अपने अश्रु बहाये थे और प्रत्येक साल 01 जनवरी को बाबा साहेब उन वीर योद्धाओं को श्रदांजली अर्पित करने के लिए जाते थे। तो आओ हम भी याद करे हमारे उन महान वीर योद्धाओं को जिन्होंने हमारे लिए इतनी बड़ी लड़ाई लड़ी थी ।
जय भीम ! जय भारतीय मूलनिवासी!

No comments:

Post Top Ad

Your Ad Spot