कबीर साहब के आश्रम के पास एक मंदिर था। एक दिन कबीर साहब की बकरी मंदिर के अन्दर प्रवेश कर गयी। मंदिर का पुजारी ब्राम्हण कबीर साहब के पास पहुंचा और कहा ‘कबीर’! तुम्हारी बकरी मंदिर में प्रवेश कर गयी है जो ठीक नहीं है। कबीर साहब ने जवाब दिया – पंडित! जानवर है, प्रवेश कर गयी होगी, मै तो नहीं गया। जवाब सुनकर मंदिर का पुजारी ब्राह्मण निरुत्तर हो गया।
बहुजन/बौद्ध/मूलनिवासी विचारधारा न ब्राह्मणवादी/हिंदूवादी है न ही इस्लाम समर्थित है |धर्म वही फलता फूलता है जिसको राजनैतिक सरक्षण प्राप्त होता है,बहुजन विचारधारा को राजनैतिक सरक्षण केवल बौद्ध राजाओं ने ही दिया था जबकि पिछली सदियों में राजनीती या तो ब्राह्मणवादी/हिंदूवादी रही या इस्लामवादी| | इन तथ्यों से आप समाज सकते हो की क्यों बौद्ध सामाजिक और आर्थिक दृस्टि से पिछड़ गए| अपनी सुरक्षा के लिए बहुजन दो भागों में बंट गए कुछ मुसलमान हो गए कुछ हिन्दू हो गए, पर जो हिन्दू हो गए उनको वर्णव्यस्था में सबसे नीचे जगह मिली, वो शूद्र कहलाये, मतलब उनको संसाधनों में कोई भागीदारी नहीं दी गयी, उल्टा जानवरों से बत्तर जीवन बनाया गया| अब जो हिन्दू बहुजन भारतवासी हैं उनमे डॉ आंबेडकर की वजह से खुद को पहचानने और बौद्ध धम्म में लौटने की चेतना जगी है पर जो बहुजन मुसलमान हो गए वो कट्टरता की वजह से तुलनात्मक अध्ययन नहीं करते, इकतरफा सोच और इस्लाम से बहार न झाकने की आदत के चलते उन तक बहुजन विचारधारा नहीं पहुंच सकती|जो बौद्ध धम्म सात सौ सालों तक भारत में सोया रहा, अब जब विज्ञानं और शिक्षा के दरवाजे सबके लिए खोल दिए गए हैं तब कैसे तेजी से बौद्ध धम्म खड़ा होता जा रहा है, कितना भी रौंदों पर समय सबका आता है| इसीलिए नाम चुना है, और बुद्ध मार्ग से ही मानवता ख़ुशाल हो सकती है|आज के समय जिस तरह धर्म राजनैतिक खेमे या गुटों में तब्दील हो गए हैं, इससे मानवता के लिए खतरा हो चला है, ये बारूद इकठ्ठा करने वाली बात है जो कभी न कभी फटेगा और तब भले ही हुंिड मरे या मुसलमान लेकिन असल में मरेगा इंसान, और जो इनको लड़वाएंगे वो अपने महलों में अपने सेना के बीच सुरक्षित रहेंगे
संत कबीर प्रतिदिन स्नान करने के लिए गंगा तट पर जाया करते थे. एक दिन उन्होंने देखा की पानी काफी गहरा होने के कारण कुछ ब्राह्मणों को जल में घुसकर स्नान करने का साहस नहीं हो रहा है. उन्होंने अपना लोटा मांज धोकर एक व्यक्ति को दिया और कहा की जाओ ब्राह्मणों को दे आओ ताकि वे भी सुविधा से गंगा स्नान कर लें.
कबीर का लोटा देखकर ब्राह्मण चिल्ला उठे–अरे जुलाहे के लोटे को दूर रखो. इससे गंगा स्नान करके तो हम अपवित्र हो जायेंगे.
कबीर आश्चर्यचकित होकर बोले–इस लोटे को कई बार मिट्टी से मांजा और गंगा जल से धोया, फिर भी साफ़ न हुआ तो दुर्भावनाओं से भरा यह मानव शरीर गंगा में स्नान करने से कैसे पवित्र होगा?
सदा ध्यान रखें :
“भारत के बहुजन लोग 6000 से भी ज्यादा जातियों में बिखरे हैं,और अपनी जाती को अपना झंडा मानकर अलग अलग शोषित होते रहते हैं, जब एक जाती पर आपत्ति आती है तो दूसरी चुप बैठती है|इसका एक ही समाधान है की सभी जाती तोड़ो और एक ही पहचान “बौद्ध” हो जाओ|क्योंकि ‘धर्म’ मानव संगठन का एक स्थाई झंडा है, बाकि के झंडे जैसे कोई राजा,कोई दार्शनिक,कोई पंचायत,कोई देवता,राजनेतिक पार्टी अदि समय गुजरने के साथ अपना महत्व खो देते हैं|लोहिया जी न सही कहा है “राजनीती अल्पकालीन धर्म है पर धर्म दीर्घकालिक राजनीती|”.
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