बुद्ध ने अनुयाईयो अपनी शिक्षा मानने से पहले परखने की अनुमति दी है ऐसा संसार के किसी भी धर्म के प्रवर्तक ने नहीं किया
बुद्ध अनुयायी भागवान बुद्ध को प्रसन्न करने के लिए, उनसे कुछ मांगने के लिए, स्वर्ग के लालच और नरक के भय से डरकर पूजा नहीं करते हैं| उनकी पूजा बुद्ध के प्रति आभार प्रकट करने के लिए होती है|वास्तव में ये पूजा नहीं है ये एल शिक्षक का उसके शिष्यों का सम्मान है|भगवन बुद्धा वास्तव में महा मानव थे ब्राह्मणी मिलावट के कारन बुद्धा को पारलोकिक शक्ति स्तापित किया जाने लगा और धम्म का असली रूप ही परवर्तित हो गया और यही रूप कई देशों में गया|
स्कुलो में शिक्षक हमें पढाते हैं, जिसके लिए उनको वेतन मिलता है, हम उनको नमस्कार करके तथा चरण-स्पर्श करके अपना आभार और आदर प्रकट करते हैं, आभार प्रकट न करना अशिष्टता माना जाता है, तो फिर गौतम बुद्ध तो ऐसे आनोखे शिक्षक थे, जो बुद्धत्व प्राप्ति के बाद पैंतालिस वर्षो तक धम्म्चारिका करते रहे और लोगो को धम्म सिखाते रहे| वह चाहते तो बुद्धत्व प्राप्ति के बाद किसी आश्रम में या हिमालय पर जाकर शेष जीवन निर्वाण का आनंद लेते हुए बिता सकते थे. लेकिन उन्होंने अनंत करुना और मैत्री के साथ लोगो को धम्म बांटा| अगर वो ऐसा नहीं करते तो आज यह अदभुत धम्म कैसे मिलता ?इसलिए धम्म मार्ग पर चलने वाला प्रत्येक व्यक्ति भागवान बुद्ध के प्रति कृतज्ञता से भर उठाता है और उसी कृतज्ञता और आभार को प्रकट करने के लिए पूजा करता है| बुद्ध का ज्ञान इतना प्रभावी है की, आज भी बैज्ञानिक युग में उतना ही प्रभाव है, जितना की भागवान बुद्ध ने २६०० वर्ष पहले उपदेशित किया था| तथागत बुद्ध ने अपने उपदेशो में सबसे बड़ी बात कही है की “किसी बात को इसलिए मत मानो की वह धर्म ग्रंथो में लिखी है, या किसी साधू संत ने कही है, किसी बात को इसलिए भी मत मानो की आपको प्रिय लगने वाले किसी व्यक्ति ने कही है. किसी भी बात को मानने से पहले उसे तर्क की कसौटी पर कस कर देखो की वह स्वं के हित के साथ मानवमात्र के हित में है या नहीं|” अर्थात किसी व्यक्ति या वर्ग के हित के लिए किसी दुसरे व्यक्ति या वर्ग का अहित करना घोर सामाजिक अन्याय है |
बुद्ध की अपने अनुयाईयो को स्वत्रन्त्रता अपनी शिक्षा मानने से पहले परखने की अनुमति दी है वहीँ दूसरी तरफ संसार के किसी भी धर्म के प्रवर्तक ने अपने मत को जाच परख करने की किसी भी प्रकार की स्वतंत्रता नही दी है,उनकी शिक्षा पर आस्था या ईमान लाना ही उस धर्म की पहली शर्त रख दी जाती है| संसार के सारे धर्मो में बुद्ध ने ही अपने मत को जांच परख करने के बाद ही अपनाने या स्वीकार करने की स्वतंत्रता दी है| ये उनके “बुद्ध धम्म” के अपने अनुयायियों की लिए दिमाक को खुला रखने का महान सन्देश है|
बुद्ध दीघ निकाय १/१३ मे अपने शिष्य कलामों उपदेश देते हुए कहते है:
” हे कलामों , किसी बात को केवल इसलिए मत मानो की वह तूम्हारे सुनने में आई है , किसी बात को केवल ईसलिए मत मानो कि वह परंपरा से चली आई है -आप दादा के जमाने से चली आई है , किसि बात को केवल इसलिए मत मानो की वह धर्म ग्रंथो में लिखी हुई है , किसी बातको केवल इसलिए मत मानो की वह न्याय शास्त्र के अनुसार है किसी बात को केवल इसलिए मत मानो की उपरी तौर पर वह मान्य प्रतीत होतीहै , किसि बात को केवल इसलिए मत मानो कि वह हमारे विश्वास या हमारी दृष्टी के अनुकूल लागती है,किसि बात को इसलिए मत मनो की उपरीतौर पर सच्ची प्रतीत होती है किसीबात को इसलिए मत मानो की वह किसी आदरणीय आचार्य द्वारा कही गई है .
कालामों ;- फिर हमें क्या करना चाहिए …….???? बुद्ध ;- कलामो , कसौटी यही है कीस्वयं अपने से प्रश्न करो कि क्या ये बात को स्वीकार करना हितकर है? क्या यह बात करना निंदनीय है ? क्या यह बात बुद्धिमानों द्वारा निषिद्ध है , क्या इस बात से कष्ट अथवा दुःख ; होता है कलमों, इतना ही नही तूम्हे यह भी देखना चाहिए कि क्या यह मत तृष्णा, घृणा ,मूढता ,और द्वेष की भावना की वृद्धि में सहायक तो नहीहै , कालामों, यह भी देखना चाहिए कि कोई मत -विशेष किसी को उनकी अपनी इन्द्रियों का गुलाम तो नही बनाता, उसे हिंसा में प्रवृत्त तोनही करता , उसे चोरी करने को प्रेरित तो नही करता , अंत में तुम्हे यह देखना चाहिए कि यह दुःख; के लिए या अहित के लिए तो नही है ,इन सब बातो को अपनी बुद्धि से जांचो, परखो और तूम्हे स्वीकार करने लायक लगे , तो ही इसे अपनाओ…….
बुद्ध अनुयायी भागवान बुद्ध को प्रसन्न करने के लिए, उनसे कुछ मांगने के लिए, स्वर्ग के लालच और नरक के भय से डरकर पूजा नहीं करते हैं| उनकी पूजा बुद्ध के प्रति आभार प्रकट करने के लिए होती है|वास्तव में ये पूजा नहीं है ये एल शिक्षक का उसके शिष्यों का सम्मान है|भगवन बुद्धा वास्तव में महा मानव थे ब्राह्मणी मिलावट के कारन बुद्धा को पारलोकिक शक्ति स्तापित किया जाने लगा और धम्म का असली रूप ही परवर्तित हो गया और यही रूप कई देशों में गया|
स्कुलो में शिक्षक हमें पढाते हैं, जिसके लिए उनको वेतन मिलता है, हम उनको नमस्कार करके तथा चरण-स्पर्श करके अपना आभार और आदर प्रकट करते हैं, आभार प्रकट न करना अशिष्टता माना जाता है, तो फिर गौतम बुद्ध तो ऐसे आनोखे शिक्षक थे, जो बुद्धत्व प्राप्ति के बाद पैंतालिस वर्षो तक धम्म्चारिका करते रहे और लोगो को धम्म सिखाते रहे| वह चाहते तो बुद्धत्व प्राप्ति के बाद किसी आश्रम में या हिमालय पर जाकर शेष जीवन निर्वाण का आनंद लेते हुए बिता सकते थे. लेकिन उन्होंने अनंत करुना और मैत्री के साथ लोगो को धम्म बांटा| अगर वो ऐसा नहीं करते तो आज यह अदभुत धम्म कैसे मिलता ?इसलिए धम्म मार्ग पर चलने वाला प्रत्येक व्यक्ति भागवान बुद्ध के प्रति कृतज्ञता से भर उठाता है और उसी कृतज्ञता और आभार को प्रकट करने के लिए पूजा करता है| बुद्ध का ज्ञान इतना प्रभावी है की, आज भी बैज्ञानिक युग में उतना ही प्रभाव है, जितना की भागवान बुद्ध ने २६०० वर्ष पहले उपदेशित किया था| तथागत बुद्ध ने अपने उपदेशो में सबसे बड़ी बात कही है की “किसी बात को इसलिए मत मानो की वह धर्म ग्रंथो में लिखी है, या किसी साधू संत ने कही है, किसी बात को इसलिए भी मत मानो की आपको प्रिय लगने वाले किसी व्यक्ति ने कही है. किसी भी बात को मानने से पहले उसे तर्क की कसौटी पर कस कर देखो की वह स्वं के हित के साथ मानवमात्र के हित में है या नहीं|” अर्थात किसी व्यक्ति या वर्ग के हित के लिए किसी दुसरे व्यक्ति या वर्ग का अहित करना घोर सामाजिक अन्याय है |
बुद्ध की अपने अनुयाईयो को स्वत्रन्त्रता अपनी शिक्षा मानने से पहले परखने की अनुमति दी है वहीँ दूसरी तरफ संसार के किसी भी धर्म के प्रवर्तक ने अपने मत को जाच परख करने की किसी भी प्रकार की स्वतंत्रता नही दी है,उनकी शिक्षा पर आस्था या ईमान लाना ही उस धर्म की पहली शर्त रख दी जाती है| संसार के सारे धर्मो में बुद्ध ने ही अपने मत को जांच परख करने के बाद ही अपनाने या स्वीकार करने की स्वतंत्रता दी है| ये उनके “बुद्ध धम्म” के अपने अनुयायियों की लिए दिमाक को खुला रखने का महान सन्देश है|
बुद्ध दीघ निकाय १/१३ मे अपने शिष्य कलामों उपदेश देते हुए कहते है:
” हे कलामों , किसी बात को केवल इसलिए मत मानो की वह तूम्हारे सुनने में आई है , किसी बात को केवल ईसलिए मत मानो कि वह परंपरा से चली आई है -आप दादा के जमाने से चली आई है , किसि बात को केवल इसलिए मत मानो की वह धर्म ग्रंथो में लिखी हुई है , किसी बातको केवल इसलिए मत मानो की वह न्याय शास्त्र के अनुसार है किसी बात को केवल इसलिए मत मानो की उपरी तौर पर वह मान्य प्रतीत होतीहै , किसि बात को केवल इसलिए मत मानो कि वह हमारे विश्वास या हमारी दृष्टी के अनुकूल लागती है,किसि बात को इसलिए मत मनो की उपरीतौर पर सच्ची प्रतीत होती है किसीबात को इसलिए मत मानो की वह किसी आदरणीय आचार्य द्वारा कही गई है .
कालामों ;- फिर हमें क्या करना चाहिए …….???? बुद्ध ;- कलामो , कसौटी यही है कीस्वयं अपने से प्रश्न करो कि क्या ये बात को स्वीकार करना हितकर है? क्या यह बात करना निंदनीय है ? क्या यह बात बुद्धिमानों द्वारा निषिद्ध है , क्या इस बात से कष्ट अथवा दुःख ; होता है कलमों, इतना ही नही तूम्हे यह भी देखना चाहिए कि क्या यह मत तृष्णा, घृणा ,मूढता ,और द्वेष की भावना की वृद्धि में सहायक तो नहीहै , कालामों, यह भी देखना चाहिए कि कोई मत -विशेष किसी को उनकी अपनी इन्द्रियों का गुलाम तो नही बनाता, उसे हिंसा में प्रवृत्त तोनही करता , उसे चोरी करने को प्रेरित तो नही करता , अंत में तुम्हे यह देखना चाहिए कि यह दुःख; के लिए या अहित के लिए तो नही है ,इन सब बातो को अपनी बुद्धि से जांचो, परखो और तूम्हे स्वीकार करने लायक लगे , तो ही इसे अपनाओ…….
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