Sardar Patel Prerak Prasang - Indian heroes

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Tuesday, 31 October 2017

Sardar Patel Prerak Prasang


बोरसद तालुका (गुजरात) के लोग 1922 में एक महा-पीड़ा के शिकार हो गए थे. एक खूंखार डकैत बाबर और उसके गिरोह ने बोरसद व आस-पास के गाँवों में हत्या और लूटपाट शुरू कर दी. एक पुलिस बल उसे कुचलने के लिए आया. लेकिन पुलिस लुटेरों से भी ज्यादा गंभीर खतरा बन गयी. पुलिस वाले लोगों भयभीत कर उनके पैसे, गहने, जवाहरात और अनाज लेकर चले जाते. सरदार पटेल और उनके सहयोगियों ने सबूतों के साथ पुलिस की स्थानीय डकैतों के साथ मिलीभगत का पर्दाफास कर दिया, फिर भी उस क्षेत्र में डाकुओं से लड़ने के लिए सरकार ने एक बड़ा कर लगाने की तैयारी कर ली थी. और हदीया कर (Hadiya Tax) लागू दिया गया.
हम अंदाज लगा सकते हैं कि, जनता पर यह तिहरी लूट कितनी खतरनाक थी!
ऐसे समय पर वल्लभ भाई पटेल आगे आये.
पटेल की बात सुनने के लिए 6000 से अधिक ग्रामीण इकट्ठा हुए उनहोंने थोपे गए कर को अनैतिक और अनावश्यक करार देते हुए इसके खिलाफ प्रस्तावित आंदोलन का समर्थन और संचालन किया. उनहोंने डाकुओं से सुरक्षा के लिए पड़ोसी गांवों से युवा स्वयंसेवकों की एक टीम का गठन किया. उन्होंने सैकड़ों कांग्रेसियों को संगठित कर, निर्देश दिए कि पूरे जिले में जानकारी प्राप्त करें. जैसे ही ये युवा हरकत में आये वैसे ही डाकु उस क्षेत्र से गायब हो गये.
पटेल ने सरकार से कहा: “हमें यहाँ आपके पुलिस बल की जरुरत नहीं है; और हम नए कर का भुगतान नहीं करेंगे.” तालुका के हर गांव ने कर के भुगतान का विरोध किया, और एकजुटता के साथ किया, और भूमि और संपत्ति की जब्ती को भी रोका. एक लंबे संघर्ष के बाद, सरकार को टैक्स वापस लेना पड़ा.
इस विजय के बाद, गांधीजी ने पटेल को “the king of Borsad” की उपाधि से सम्मानित किया. इस आंदोलन में पटेल की प्रमुख उपलब्धियों में से एक यह रही कि अलग अलग जातियों और समुदायों जैसे कि हिंदुओं और मुसलमानों, के बीच विश्वास और एकजुटता का निर्माण हुआ जो सामाजिक-आर्थिक सिस्टम्स पर बटे हुए थे.

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