समर्पण व हिम्मत से साथ पूरा करते थे.
उनके इस गुण का दर्शन हमें सन् 1909 की
इस घटना से होते है .
वे कोर्ट में केस लड़ रहे थे, उस समय उन्हें
अपनी पत्नी की मृत्यु ( 11 जनवरी 1909)
का तार मिला. पढ़कर उन्होंने इस प्रकार
पत्र को अपनी जेब में रख लिया जैसे कुछ
हुआ ही नहीं. दो घंटे तक बहस कर उन्होंने
वह केस जीत लिया .
बहस पूर्ण हो जाने के बाद न्यायाधीश व
अन्य लोगों को जब यह खबर मिली कि
सरदार पटेल की पत्नी का निधन हुआ
गया .
तब उन्होंने सरदार से इस बारे में पूछा तो
सरदार ने कहा कि “उस समय मैं अपना
फर्ज निभा रहा था, जिसका शुल्क मेरे
मुवक्किल ने न्याय के लिए मुझे दिया
था . मैं उसके साथ अन्याय कैसे कर सकता
था . ” ऐसी कर्तव्यपरायणता और शेर जैसे
कलेजे की मिशाल इतिहास में विरले ही
मिलती है . इससे बड़ा कर्तव्यपरायणता
का चरित्र और क्या हो सकता है?
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