- आचार्य चाणक्य समझाते हैं कि अनेक असंख्य शास्त्रों का अध्ययन करके लिखे जाने वाले राजनीति समुच्चय नीतिग्रन्थ रचना के आरम्भ में वे विष्णु भगवानजी को सिर झुकाकर प्रणाम करते हैं।
- ( व्याख्या - आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मैं स्वर्ग, मृत्यु, पाताल के कर्ता-धर्ता भगवान विष्णुजी को नतमस्तक होकर वेदयुक्त अनेक महान ग्रन्थों से मोती चुनकर राजनीति समुच्चय नामक ग्रंथ का वर्णन करूंगा। )
- मूर्ख शिष्य को पढ़ाने से, दुष्ट चरित्र स्त्री का भरण-पोषण करने से और दुखियों के साथ अभद्र आचरण करने से बुद्धीमान मनुष्य कष्ट उठाता है।
- ( व्याख्या - मूर्ख शिष्य को उपदेश देने, दुष्ट क्रूर और कुलटी नारी का भरण्-पोषण तथा दुखियों के संग रहने से, बुद्धीमान व्यक्तियों को भी अपार कष्ट हो सकता हैं। महात्मा चाणक्य ने पूर्णतः स्पष्ट कर दिया है कि धूर्त शिष्य को अच्छी बात को करने हेतु अभिप्रेरित नहीं करना चाहिए। इस प्रकार दुष्ट व्यवहार वाली स्त्री का भी साथ उचित नहीं है और दीन-दुखियों के संग उठने-बैठने एवं समागम से ज्ञान से परिपूर्ण बुद्धीमान व्यक्ति को भी दुःख उठाना पड़ता है। )
- कड़वेपन वाणी से प्रयोग करने वाली और दुराचारी पत्नी, स्त्री, मूर्ख मित्र तथा कहने को न मानने वाला, सामना करने वाला और जहां सांप निवास करता हो, ऐसे सर्प वाले गृह में वास करना निस्सन्देह मृत्यु रूप समान है।
- ( व्याख्या - आचार्य चाणक्य समझते हैं कि जिस व्यक्ति की स्त्री या पत्नी दुष्ट दुराचारिणी होती है, जिसके सखा या मित्र नीच स्वभाव रखते हों और नौकर-नौकरानी बात-बात में तुरन्त उत्तर देते हों, कहना बिल्कुल न मानते हों, और जिस गृह में सांप अपना वास कर ले। ऐसे गृह में वास करने वाला पुरूष निश्चित ही मृत्यु के बिल्कुल नजदीक रहता है। ऐसे मनुष्य की मृत्यु की समय सीमा निश्चित नहीं होती। )
- बुरे वक्त हेतु धनसंग्रह करें और धन से अत्यधिक स्त्री की धर्म रक्षा करें और सदा ही स्त्री और धन से भी अत्यधिक स्वयं की रक्षा करनी चाहिए।
- ( व्याख्या - बुद्धी वाले व्यक्ति को सदैव चाहिए कि धनसंग्रह द्वारा अपने आपत्ति काल के समय की सुरक्षा करे तथा धन से अधिक पत्नी धर्म की रक्षा करे। इन दोनों से भी अधिक स्व्यं की सुरक्षा करे, क्योंकि इपना नाश हो जाने से धन और स्त्री दोनों से क्या लाभ? व्यक्ति को अपनी समस्त वस्तुओं की रक्षा करते-करते जान गंवानी पड़े तो सबसे पहले अपनी रक्षा करनी चाहिए। )
- धनवान, वेदज्ञाता ब्राह्मण, धर्म और न्यायपालक राजन्, कृषि की सिंचाई के लिए नदी एवं पांचवां वैद्य, जिस देश की किसी भी स्थान में पांचों स्थापित न हों वहां पल भर भी नहीं रहना चाहिए।
- ( व्याख्या - जिस देश में धन-धान्य युक्त व्यापारी कर्मकांड में निपुण वेदज्ञाता पुरोहित ब्राह्मण, धर्म न्यायशासन व्यवस्था में गुणी राजा, सिंचाई हेतु जल की पूर्ति करने के लिए नदियां और रोग निवारण के लिए वैद्य या डॉक्टर निवास न करते हों या ये पांचों सुविधाएं विद्यमान न हों वहां व्यक्ति को एक दिन या पल भर भी नहीं टिकना चाहिए। )
No comments:
Post a Comment