चाणक्य नीति (अध्याय-14) - Indian heroes

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Monday 27 November 2017

चाणक्य नीति (अध्याय-14)


  • आचार्य चाणक्य ने कहा है कि धरा या पृथ्वी पर तीन ही रत्न हैं- जल, अन्न और प्रिय मृदुवचन अथवा नीतिवाक्य। परन्तु मूर्खों द्वारा पत्थर या कांच के टुकड़ों को ही रत्नमणि का नाम दे दिया गया है।
  • दरिद्रता या निर्धनता, शारीरिक और मानसिक रोग एवं दुःख और बंधन तथा विपत्तियां - ये समस्त देहधारियों जीवों के अपने पापरूप समान वृक्ष के फल हैं।
  • खोया या नष्ट हुआ धन पुनः प्राप्त हो सकता है। एक मित्र से मित्रता नष्ट होने पर दूसरा मित्र मिल सकता है, स्त्री भी पुनः मिल सकती है, दूसरा विवाह भी हो सकता है, संपत्ति, देश फिर मिल सकते हैं- सभी बारम्बार प्राप्त हो सकते हैं, परन्तु मानव-शरीर या देह बार-बार या दोबारा कदापि नहीं मिल सकती।
  • आचार्य चाणक्य ने कहा है कि अशुभ, निंदित कर्म या कार्य करने के बाद पछतावा करने वाले मनुष्य की जैसे बुद्धी उत्पन्न होती है, यदि वैसी मति पहले या पूर्व ही हो जाए तो किसका मोक्ष न हो जाए?
  • जो जिसके मन-हृदय में रचा है, वास करता है, वह दूर होने पर भी दूर नहीं है, और जो हृदय में समाया या बसा हुआ नहीं है, अति निकटतम रहता हुआ भी दूर ही रहता है।
  • मनुष्य को चाहिए कि वह प्रभु की कृपा दृष्टि का पात्र बनने हेतु सर्वप्रथम मधुर या मृदु मंत्रों का जाप या गान करे।

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