chitranjan das hindi story- चितरंजन दास की जिन्दगी की एक संस्मरण - Indian heroes

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Wednesday, 8 November 2017

chitranjan das hindi story- चितरंजन दास की जिन्दगी की एक संस्मरण

chitranjan das hindi story – पिताजी मुझे कुछ रुपयों की आवश्यकता है एक लड़के ने अपने पिता से कहा | लेकिन बेटा तुमने कल ही तो पांच रूपये लिए थे पिता ने अपने पुत्र से प्रश्न किया तो पुत्रने कहा हाँ पिताजी लिए तो थे लेकिन वो तो खर्च हो गये है ना | पिता को अपने पुत्र पर बहुत भरोसा था तो उन्होंने कुछ भी अधिक नहीं पूछते हुए पुत्र को तीन रूपये थमा दिए  और बालक उन रुपयों को लेकर चला गया |

पिता को वैसे तो अपने बेटे पर कोई संदेह नहीं था कि उनका बेटा रुपयों को कन्हा खर्च करता है लेकिन फिर भी उत्सुकता के चलते वो जानना चाहते थे इसलिए उन्होंने अपने एक विश्वासपात्र नौकर को बुलाया और कहा कि देखो अभी अभी चितरंजन तीन रूपये लेकर गया है तुम जाओ और उसका पीछा करो और देखो तो सही वो ये पैसे खर्च कन्हा करता है |
नौकर ने चितरंजन का पीछा किया | चितरंजन बाजार की और गया और उसे रस्ते में एक लड़का मिला शायद वह चितरंजन की ही प्रतीक्षा कर रहा था और दोनों मिलकर एक किताबों की दुकान पर चले गये |
तो नौकर ने क्या देखा कि बालक ने दो रूपये की किताबें उस युवक को दिलवाई और उसके बाद जूती की दुकान पर गया और बालक को जूते दिलवा दिए | नौकर ने यह सब देखा और जाकर मालिक को कह दिया कि ऐसी बात है | शाम को जब चितरंजन घर बड़ी ख़ुशी ख़ुशी आया क्योंकि उस के मन में किसी की मदद करने से मिला संतोष था इसलिए आते ही उसके पिता ने भी चितरंजन को गले से लगा लिया और बोले ‘बेटा गरीबों की मदद करना ही हमारा सच्चा धर्म है और हमे इस से पीछे नहीं हटना चाहिए तभी तो वह बालक बड़ा होकर ‘देशबंधु चितरंजनदास’ कहलाया |
आपको ये कहानी कैसी लगी इस बारे में अपने विचार हमे अवश्य कमेन्ट के माध्यम से बताएं ।

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