– तरनी मजूमदार और नलिनीकांत जैसे कुछ क्रांतिकारी उस वक़्त ऐसे थे जिनसे पुलिस भी डरती थी और उन्हें पकड़ने के लिए सरकार ने बड़े बड़े इनाम रखे हुए थे लेकिन फिर भी क्रांतिकारी हर बार किसी न किसी तरीके से कुछ ऐसा कर जाते कि पुलिस के पास कुछ भी नहीं बचता सिवाय हाथ मलने के ।
एक बाद वे अटगांव नाम की जगह पर ठहरे हुए थे और ये 7 जनवरी 1918 की रात थी कि पुलिस ने उन्हें घेर लिया । रात का समय था और अचानक पुलिस द्वारा घेरे जाने पर वो हडबडा गये लेकिन फिर भी उन लोगो ने हिम्मत नही हारी और डटकर पुलिस का मुकाबला किया । इसी वजह से वो बचकर निकल गये और पुलिस वाले सिवाय मायूस होने के कुछ नहीं कर सकते थे । एक दिन पुलिस वालों को खबर मिली कि tarni और bagchi आसाम की पहाड़ियों में छिपे है इसलिए पुलिस ने वंहा जाकर भी छापा मारा उस समय सभी क्रांतिकारी भोजन बना रहे थे लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि पुलिस ने उन्हें घेर लिया है वो लोग भी कड़े मुकाबले के लिए तैयार हो गये । पुलिस वालो ने बिना आव या ताव देखे उन पर निरंतर गोलियां चलानी शुरू करदी बदले में क्रांतिकारियों के भी पुरजोर जवाबी फायरिंग की । काफी देर तक गोलीबारी हो जाने के कारन ऐसा हुआ कि क्रांतिकारियों के पास गोला बारूद कम पड़ गया इस पर nalini ने अपने मित्रों को हौसला दिया कि बस थोड़ी देर और हम इन्हें भगा देंगे । यंहा भी क्रांतिकारी बच निकले और पुलिस के हाथ एक बार फिर निराशा ही लगी ।
एक दी पुलिस को एक बार फिर खबर मिली कि इस बार तरनी भवानीपुर स्थित कंसारी पारा में ठहरा हुआ है तो पुलिस ने इस बार बहुत जाब्ते के साथ बंदोबस्त किया । tarni को लगा इस बार पुलिस के घेरे से बच पाना बहुत मुश्किल है तो भी उसने हिम्मत नहीं हारी और जैसे तेसे छत पर पहुँच गया और वही से नीचे कूद गया जिसकी वजह से उसकी तंग की हड्डी टूट गयी फिर भी तरनी घबराया नहीं और उसका दिमाग तेजी से वंहा से किसी तरह बच निकलने को दौड़ रहा था इसलिए उसने जल्दी से भिखारी होने का स्वांग रचा जिसकी वजह से पुलिस ने भी उसकी सफाई पर शक नहीं कर पायी और वो सफलतापूर्वक बच निकला ।
सन 1918 में ही एक बार फिर तरनी और नलिनी ढाका के कटला बाजार में रुके हुए थे कि पुलिस को इसकी जानकारी मिलते ही एक बार फिर उन्होंने इनकी घेर लिए लेकिन क्रन्तिकारी भी अटल थे उन्होंने पुलिस से फिर दो दो हाथ करने का सोचा और भिड गये । दोनों तरफ की गोलीबारी में एक कांस्टेबल मारा गया और कुछ ही समय बाद एक गोली तरनी को भी लग गयी और वह गिर गया पुलिस वाले उसे अस्पताल लेकर गये लेकिन वो शहीद हो गया और इधर बागची भी डटा रहा और वो भी गोली लगने से शहीद हो गया । लेकिन उसका खौफ इतना था कि पुलिस वाले अब भी उसके पास जाने से कतरा रहे थे ।
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देश में एकता कैसे लाये – Hindi story for kids by vinoba bhave
एक बाद वे अटगांव नाम की जगह पर ठहरे हुए थे और ये 7 जनवरी 1918 की रात थी कि पुलिस ने उन्हें घेर लिया । रात का समय था और अचानक पुलिस द्वारा घेरे जाने पर वो हडबडा गये लेकिन फिर भी उन लोगो ने हिम्मत नही हारी और डटकर पुलिस का मुकाबला किया । इसी वजह से वो बचकर निकल गये और पुलिस वाले सिवाय मायूस होने के कुछ नहीं कर सकते थे । एक दिन पुलिस वालों को खबर मिली कि tarni और bagchi आसाम की पहाड़ियों में छिपे है इसलिए पुलिस ने वंहा जाकर भी छापा मारा उस समय सभी क्रांतिकारी भोजन बना रहे थे लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि पुलिस ने उन्हें घेर लिया है वो लोग भी कड़े मुकाबले के लिए तैयार हो गये । पुलिस वालो ने बिना आव या ताव देखे उन पर निरंतर गोलियां चलानी शुरू करदी बदले में क्रांतिकारियों के भी पुरजोर जवाबी फायरिंग की । काफी देर तक गोलीबारी हो जाने के कारन ऐसा हुआ कि क्रांतिकारियों के पास गोला बारूद कम पड़ गया इस पर nalini ने अपने मित्रों को हौसला दिया कि बस थोड़ी देर और हम इन्हें भगा देंगे । यंहा भी क्रांतिकारी बच निकले और पुलिस के हाथ एक बार फिर निराशा ही लगी ।
एक दी पुलिस को एक बार फिर खबर मिली कि इस बार तरनी भवानीपुर स्थित कंसारी पारा में ठहरा हुआ है तो पुलिस ने इस बार बहुत जाब्ते के साथ बंदोबस्त किया । tarni को लगा इस बार पुलिस के घेरे से बच पाना बहुत मुश्किल है तो भी उसने हिम्मत नहीं हारी और जैसे तेसे छत पर पहुँच गया और वही से नीचे कूद गया जिसकी वजह से उसकी तंग की हड्डी टूट गयी फिर भी तरनी घबराया नहीं और उसका दिमाग तेजी से वंहा से किसी तरह बच निकलने को दौड़ रहा था इसलिए उसने जल्दी से भिखारी होने का स्वांग रचा जिसकी वजह से पुलिस ने भी उसकी सफाई पर शक नहीं कर पायी और वो सफलतापूर्वक बच निकला ।
सन 1918 में ही एक बार फिर तरनी और नलिनी ढाका के कटला बाजार में रुके हुए थे कि पुलिस को इसकी जानकारी मिलते ही एक बार फिर उन्होंने इनकी घेर लिए लेकिन क्रन्तिकारी भी अटल थे उन्होंने पुलिस से फिर दो दो हाथ करने का सोचा और भिड गये । दोनों तरफ की गोलीबारी में एक कांस्टेबल मारा गया और कुछ ही समय बाद एक गोली तरनी को भी लग गयी और वह गिर गया पुलिस वाले उसे अस्पताल लेकर गये लेकिन वो शहीद हो गया और इधर बागची भी डटा रहा और वो भी गोली लगने से शहीद हो गया । लेकिन उसका खौफ इतना था कि पुलिस वाले अब भी उसके पास जाने से कतरा रहे थे ।
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