1919 में मान्य दातोबा पंवार के परिश्रम से डॉ. अंबेडकर की कोलाहपुर के महाराजा छत्रपति शाहूजी से मुलाकात हुई । डॉ. अंबेडकर ने महाराजा से एक पाक्षिक समाचार पत्र चालू करने के लिए आर्थिक सहायता हेतु निवेदन किया , जिसे महाराजा ने तुरंत स्वीकार कर लिया । उन्होंने 31 जनवरी 1920 को एक पाक्षिक समाचार पत्र जारी किया। इसका नाम था ‘मूकनायक’ अर्थात ‘गूंगो का नेता’ । इसके पहले ही अंक से डॉ. अंबेडकर ने अत्यंत सरल, आश्वस्त करने वाली और सशक्त भाषा में अखबार का लक्ष्य रेखाकित करते हुए लिखा कि भारत असमानता का घर है और हिंदू समाज एक बहु मंजिली मीनार की तरह है, जिसमेँ न तो कोई सीढी है और न ही कोई दरवाजा ।जो जिस मंजिल पर जन्मा है,उसी मे मरेगा। हिदू समाज के तीन भाग है- (1) ब्राह्मण, (2) गेर ब्राह्मण और (3) अछूत । उन लोगों के लिए यह कितनी शर्म की बात हैं जो कहते है कि परमात्मा पशुओं, पेड़-पौधो व अन्य जीवजंतुओ में निवास करता है, परंतु अपने ही समान मनुष्यों को वे अछूत समझते है।
मूकनायक में छपे एक अन्य लेख में उन्होंने कहा कि भारत को केवल स्वतंत्र कराना ही पर्याप्त नहीँ है,अपितु भारत एक ऐसा राष्ट्र बने , जिसमें सभी को धार्मिक , सामाजिक, राजनेतिक व आर्थिक मामलों में समान अधिकारों की गारंटी हो । जिससे सभी को अपने भविस्य को उज्जवल बनाने और उन्नत करने का अवसर मिले। एक और लेख में उन्होंने कहा कि जिस स्वराज में दलितों के लिए मौलिक अधिकारों की गारंटी नहीं हो, वह उनके लिए स्वराज नहीँ होगा, अपितु यह उनके लिए एक नई गुलामी होगी।
मार्च 1920 से कोल्हापुर रियासत के आनगाँव में अछूटो की एक कॅनफ्रेन्स की अध्यक्षता डॉ. अंबेडकर ने की । इसमे माननीय शाहूजी महाराज स्वयं पधारे । इस अवसर पर बोलते हुए जब महाराज ने एक पेगंबरी अंदाज से यह घोषणा की तो श्रोता मंत्र मुग्ध रह गए । “आपको डा. अंबेडकर के रूप में आपका मुक्तिदाता मिल गया है । मुझे विश्वास है कि ये आपकी दासता की बेड़ियो को काट गिराएगे । यही नहीं मेरा मन मुझे कहता हैकि एक समय आएगा , जब डॉ. अंबेडकर ऐसे नेता बनेंगे, जिनकी ख्याति पूरे भारत में फैलेगी और जिसकी विद्वता का लोहा प्रत्येक व्यक्ति मानेगा.”
जिस समय ड़ा. आंबेडकर ने मूकनायक शुरू किया वह ऐसा भयानक और अनुचित काल था कि बालगंगाधर तिलक ने अपने समाचार पत्र ‘केसरी’ में ‘मूकनायक’ के शुरू होने का विज्ञापन भी प्रकाशित करने से इंकार कर दिया। हालाँकि विज्ञापन के लिए रुपये भी दिए जा रहे थें।
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