सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले - Indian heroes

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Friday 30 December 2016

सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले




             पूरा नाम   –   सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले
             जन्म        –   3 जनवरी 1831
             जन्मस्थान –  नायगांव, महाराष्ट
             पिता         –   खंडोजी नावसे पाटिल
             माता         –   लक्ष्मीबाई
             विवाह       –   ज्योतिराव फुले

              सावित्रीबाई फुले  का जन्म महाराष्ट्र  के  नायगांव में 1831  को  हुआ था. उनके  परिवार में सभी खेती करते थे. 9 साल  की  आयु में  ही उनका  विवाह  1840  में  12 साल के ज्योतिराव  फुले से  हुआ.  सावित्रीबाई  और ज्योतिराव को दो संताने है. जिसमे से  यशवंतराव  को उन्होंने दत्तक लिया है जो एक विधवा ब्राह्मण का बेटा था
    
             सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले भारतीय समाजसुधारक और कवियित्री थी. अपने पति, ज्योतिराव फुले के साथ उन्होंने भारत में महिलाओ के अधिकारो को बढ़ाने में  महत्वपूर्ण काम किये है. उन्होंने 1848 में पुणे में  देश की पहली महिला स्कूल की   स्थापना  की.  सावित्रीबाई  फुले  जातिभेद, रंगभेद  और लिंगभेद के सख्त विरोध में थी
              
                 सावित्रीबाई  एक  शिक्षण  सुधारक  और  समाज सुधारक दोनों ही तरह  का काम करती थी. ये सभी  काम  वह विशेष रूप से ब्रिटिश कालीन भारत में  महिलाओ के  विकास के लिये करती थी.  19 वि  शताब्दी में कम उम्र  में ही  विवाह करना हिन्दूओ की परंपरा थी. इसीलिये उस  समय  बहोत सी महिलाये   अल्पायु में ही विधवा  बन  जाती थी,  और धार्मिक परम्पराओ के  अनुसार  महिलाओ का  पुनर्विवाह  नही  किया जाता था.1881 में कोल्हापुर की गज़ेटि में ऐसा देखा गया की विधवा  होने  के  बाद  उस  समय महिलाओ  को अपने सर के बाल काटने  पड़ते थे, और  बहोत  ही  साधारण जीवन  जीना पड़ता था

                  सावित्रीबाई  और  ज्योतिराव ऐसी महिलाओ को उनका हक्क दिलवाना चाहते थे. इसे  देखते हुए उन्होंने नाईयो के खिलाफ आंदोलन करना शुरू किया और विधवा महिलाओ को सर के बाल कटवाने से बचाया.
                उस समय महिलाओ को सामाजिक सुरक्षा न होने की  वजह  से  महिलाओ  पर  काफी अत्याचार किये जाते थे, जिसमे  कही-कही  तो  घर के  सदस्यों  द्वारा ही महिलाओ पर शारीरिक शोषण किया  जाता था.  गर्भवती महिलाओ का कई बार गर्भपात किया  जाता था , और बेटी पैदा   होने  के  डरसे बहोत सी महिलाये आत्महत्या करने लगती.

                एक बार ज्योतिराव ने एक महिला को आत्महत्या करने से रोका, और उसे वादा करने लगाया बच्चे के जन्म होते ही वह उसे अपना नाम  दे. सावित्रीबाई ने भी उस महिला और अपने घर रहने की आज्ञा दे दी और गर्भवती महिला  की  सेवा भी की.   सावित्रीबाई और ज्योतिराव ने उस बच्चे को अपनाने के बाद उसे  यशवंतराव  नाम  दिया . यशवंतराव बड़ा   होकर डॉक्टर बना. महिलाओ  पर  हो रहे  अत्याचारो को देखते  हुए सावित्रीबाई और  ज्योतिराव ने  महिलाओ की  सुरक्षा के लिये एक सेंटर की स्थापना की,और अपने सेंटर का नाम“बालहत्या  प्रतिबंधक गृह” रखा. सावित्रीबाई  महिलाओ की  जी जान से सेवा करती थी और चाहती  थी की सभी बच्चे  उन्ही के घर में जन्म ले.

                     घर में सावित्रीबाई किसी प्रकार  का रंगभेद या जाति भेद नही  करती  थी  वह  सभी  गर्भवती  महिलाओ का समान उपचार करती थी.
             सावित्रीबाई फुले 19 वि शताब्दी की पहली भारतीय समाज सुधारक थी और भारत में महिलाओ के  अधिकारो को विकसित करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा.

                  सावित्रीबाई फुले  और  दत्तक पुत्र  यशवंतराव ने वैश्विक स्तर 1897में मरीजोका इलाज करनेके लिये अस्पताल खोल  रखा  था. उनका  अस्पताल  पुणे  के हडपसर में सासने माला में स्थित है. उनका अस्पताल खुली प्राकृतिक जगह पर स्थित है. अपने अस्पताल में सावित्रीबाई खुद हर एक मरीज का ध्यान रखती, उन्हें विविध सुविधाये प्रदान करती. इस तरह मरीजो का इलाज करते-करते वह खुद एक दिन मरीज बन गयी. और इसी के चलते 10 मार्च 1897 को उनकी मृत्यु हो गयी.

                 सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं. हर बिरादरी और धर्म के लिये उन्होंने काम किया. जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर तक फैंका करते थे. सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं. अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं.

उनका पूरा जीवन समाज में वंचित तबके खासकर महिलाओं और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष में बीता. उनकी एक बहुत ही प्रसिद्ध कविता है जिसमें वह सबको पढ़ने लिखने की प्रेरणा देकर जाति तोड़ने की बात करती है :-

जाओ जाकर पढ़ो-लिखो, बनो आत्मनिर्भर,
बनो मेहनती
काम करो-ज्ञान और धन इकट्ठा करो
ज्ञान के बिना सब खो जाता है, ज्ञान के बिना हम जानवर बन जाते है
इसलिए, खाली ना बैठो, जाओ, जाकर शिक्षा लो
तुम्हारे पास सीखने का सुनहरा मौका है,
इसलिए सीखो और जाति के बंधन तोड़ दो.

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