सूबेदार रामजीराव सकपाल वृद्ध हो चुके थे और बीमार चल रहे थे। घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। पर सूबेदार रामजीराव सकपाल भीमराव से अभी छोर भी आगे पढाई जारी रखवाने पर तुले थे । वह भीमराव की पढ़ाई के लिए किसी भी तरह धन जुटाने का दृढ़ निश्चय किए हुए थे पर भीमराव अपने बूढे और बीमार पिता पर और अधिक भार नहीं डालना चाहते थे । 1913 से भीमराव पिता की इच्छा के विरुद्ध बडोदा स्टेट की सेना में लेफ्टीनेंट भर्ती हो गए । अभी ‘भीमराव अंबेडकर को भर्ती हुए लगभग पंद्रह दिन ही बीते थे कि उन्हें बम्बई से सूबेदार रामजीराव सकपाल के अत्यधिक बीमार होने का तार आ पहुचा । अत उन्हें नौकरी से त्यागपत्र देकर बड़ोदा से तुरंत बम्बई आना पडा । आंबेडकर घर पहुंचे तो पिता जी की हालत बहुत चिंताजनक हो चुकी दी । बीमारी नियत्रण से बाहर हो चुकी धी । अंबेडकर भरे दिल से अपने उस पिता की ओर देखते रहे जिसने उन्हें पढाई के लिए सारा जीवन कर्ज़ा लेकर और न जाने क्या क्या दुख सहन किए थे । 2 फरवरी 1913 को दृढ़ता और बहादुरी की प्रतिमा सूबेदार रामजीराव सकपाल जपने विशेष प्रयतनो द्धारा ‘भीमराव आंबेडकर नामक उदीयमान सूरज” भारतवर्ष को सौंपकर सदा के लिए सो गए । जो जागे चलकर लत्ताड़े हुए व बेसहारा लोगों का सहारा, करोडों गुलामों व स्त्री जाति का मसीहा और मुक्तिदाता बने ।
Thursday, 12 January 2017
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भीमराव अंबेडकर के पिता की मृत्यु
भीमराव अंबेडकर के पिता की मृत्यु
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