कौंडरी लाइव : मूलनिवासी बहुजन जिनको ब्राह्मणवादी मीडिया दलित कहता है , उनके खौफ में गाँव से पलायन कर गए ठाकुर…. - Indian heroes

Post Top Ad

Sunday 8 January 2017

कौंडरी लाइव : मूलनिवासी बहुजन जिनको ब्राह्मणवादी मीडिया दलित कहता है , उनके खौफ में गाँव से पलायन कर गए ठाकुर….


*कभी बोलती थी तूती.. अब चूल्हा 
चक्की समेटकर भागने को मजबूर
*पहले गांव में एक हजार से ज्यादा 
थे ठाकुर, अब बचे महज 25 
*20 साल पहले हुई बबलू ठाकुर की 
हत्या के बाद बदले हालात 
*ठाकुरों पर एससी/ एसटी एक्ट के 
मुकदमों की हो गई थी भरमार



कौंडरी! दिल्ली हाईवे पर पाकबड़ा – डींगरपुर बाईपास से कटे लिंक रोड के किनारे बसा छोटा सा गांव। कभी यहां ठाकुरों की तूती बोलती थी। दो दशक पहले तक ठाकुर यहां बहुतायत में थे और गांव से लेकर इलाके तक की हर पंचायत का फैसला इन्हीं के इशारों पर होता था।

दलितों की तो इनके सामने बैठने तक की हिम्मत नहीं थी। लेकिन अब हालात एकदम बदल गए हैं। ठाकुरों के चेहरों पर दलितों का खौफ तैर रहा है। गांव में ठाकुरों की महज दो हवेली बची हैं। दलितों के खौफ में कमोबेश सभी ठाकुर परिवार कौंडरी से पलायन कर गए हैं। जो दो घर बचे हैं उन्होंने भी गांव छोड़ने की तैयारी कर ली है।

दलितों के खौफ से ठाकुर पलायन कर गए! ये सुनने में थोड़ा अटपटा जरूर लगता है, लेकिन मुरादाबाद मंडल मुख्यालय से करीब 12 किमी की दूरी पर बसे कौंडरी गांव के मौजूदा हालात कुछ यही तस्वीर पेश कर रहे हैं। दो दशक में चालीस से अधिक ठाकुर परिवारों का पलायन ठाकुरों पर छाई दलितों की दहशत की कहानी बयां कर रहा है।

कभी ठाकुरों की तादाद गांव में एक हजार हुआ करती थी अब महज उंगलियों पर गिनने लायक बचे हैं। छोटे – बड़े सब मिलाकर गिनती के 25 ठाकुर बचे हैं, गांव में। इनकी भी हालत ऐसी है कि अब गए और तब गए।

गांव में दलितों और ठाकुरों के बीच बोलचाल एकदम बंद है। हालांकि हमेशा से ऐसा नहीं था और बीस साल पहले तक गांव में सभी जातियों के लोग मिलजुलकर ही रहते थे। लेकिन अब यहां जाटव बिरादरी का सिक्का चलता है।

एक हत्या ने खींच दी दलित और ठाकुरों में लकीर

कौंडरी गांव में करीब बीस साल पहले कमर सिंह जाटव की बेटी की बारात आई थी। बारात चढ़त के दौरान ठाकुरों के कुछ लड़कों ने बारातियों के साथ गाली गलौज कर दी। जिसे लेकर दोनों पक्षों में झगड़ा हो गया और नौबत फायरिंग तक पहुंच गई।

फायरिंग में एक गोली बबलू ठाकुर और लगी और उसकी मौत हो गई। दलिताें के हाथों एक ठाकुर की मौत के बाद से ही इस गांव में दलित और ठाकुरों के बीच ऐसी रंजिश पनपी जो आज तक बरकरार है।

No comments:

Post Top Ad

Your Ad Spot