26 जनवरी की पूर्व संध्या पर प्रख्यात लेखिका और निष्ठावान अम्बेडकरी कार्यकर्ता अनीता भारती का यह आलेख अपने प्रदर्शन के बहाने संविधान का विरोध करने वालों के असली मंसूबों को उजागर कर हमारे संविधान के महत्व का बयान कर रहा है.
भारत का संविधान अपने आरंभिक स्वरुप से लेकर पूर्ण होकर बनने, बनने से लेकर लागू होने, और लागू होने से लेकर आज तक लोकतंत्र विरोधियों और कट्टरपंथी ताकतों के निशाने पर रहा है.संविधान को निशाने पर लेने के कई कारण है. पहला तो यह कि हमारा संविधान भारत के सभी लोगों को एक समान अधिकार और स्वतंत्रता प्रदान करता है फिर चाहे वे किसी भी जाति-धर्म-भाषा-रंग-रूप-लिंग से संबंध क्यों न रखते हो.
संविधान विरोध का दूसरा कारण है कि वह समाज के सभी वंचित तबकों के हितों के पालन और उनकी रक्षा की बात करता है.तीसरा बड़ा कारण यह है कि वह भारत के सार्वजनिक संसाधनों को निजी हाथों में जाने के विरुद्ध जनता के पक्ष में राष्ट्रीयकरण की बात करता है.चौथा कारण संविधान में भारत के मूलनिवासी बहुजन (जिन्हें ब्राह्मणवादी मीडिया “दलित” नाम से सम्बोधित करता है)-आदिवासियों के आरक्षण का प्रावधान होना है.इन सब कारणों के चलते संविधान का बॉयकाट करने, बार-बार उसको संशोधन करने या या उसको पूर्ण रूप से बदल नवीन संविधान लागू करने की बातें करने वालों में आरक्षण विरोधी, अम्बेडकर विरोधी, भारत के मूलनिवासी बहुजन (जिन्हें ब्राह्मणवादी मीडिया “दलित” नाम से सम्बोधित करता है)-वंचित-स्त्री विरोधी, मनुस्मृति समर्थक जातिवादी चेहरे शामिल है.जाहिर है कि इन तमाम कारणों के साथ संविधान को हटाने, संशोधन करने और देश के लिए नए संविधान की वकालत किये जाने का सबसे बड़ा कारण यह है कि भारत के संविधान का डॉ.अम्बेडकर द्वारा लिखा गया है.संविधान विरोध की ये तमाम बातें कोई नई नहीं हैं, बल्कि ये बातें तब से होती रही हैं जबसे हमारा संविधान बना. लेकिन इसके साथ खुशी कि बात यह है कि देश का भारत के मूलनिवासी बहुजन (जिन्हें ब्राह्मणवादी मीडिया “दलित” नाम से सम्बोधित करता है)-वंचित तबका आरम्भ से ही इन विरोधों और कुतर्कों का कठोरता से सफल जबाब देता रहा है.दरअसल संविधान विरोध का मुख्य कारण उसमें भारत के मूलनिवासी बहुजन (जिन्हें ब्राह्मणवादी मीडिया “दलित” नाम से सम्बोधित करता है)-आदिवासियों के लिए सामाजिक आधार पर स्पष्ट रुप से आरक्षण का प्रावधान होना है.पिछले एक साल से भ्रष्ट्राचार के मुद्दे को लेकर बार-बार संविधान को टारगेट किया गया. परंतु इस बार हैरान करने वाली बात है कि अपने आपको ताल ठोंककर प्रगातिशील और वामपंथी होने का दावा ठोकने वाले ग्रुप ‘दामिनी बलात्कार केस’ की आड़ लेकर ये सब कर रहे हैं.
संविधान दिवस का बॉयकाट करने का फैसला क्या इन तथाकथितों के मन में भारत के मूलनिवासी बहुजन (जिन्हें ब्राह्मणवादी मीडिया “दलित” नाम से सम्बोधित करता है)यों के प्रति सदियों से छिपी नफरत और द्वेष का नतीजा नही है?कितनी अजीब बात है कि एक तरफ यह लोग ‘दामिनी बलात्कार’ केस में अपराधियों के विरुद्ध कड़े से कड़ा न्याय भी संविधान के माध्यम से चाहते है और दूसरी तरफ उसका बॉयकाट भी करते है.यह किसी से छिपा नही है कि आजादी के बाद भारत के लिए निर्मित हो रहे संविधान में डा.अम्बेडकर जब ‘हिन्दू कोड बिल’ के माध्यम से भारतीय स्त्री को पुरुषों के समान अधिक से अधिक अधिकार और समानता देने के लिए अड़े हुए थे, उस समय भी कट्टरपंथी तबका हिन्दू कोड बिल और उनके खिलाफ संगठित रुप से लामबंद हो डॉ अम्बेडकर के विरोध में ज़हर उगल रहे थे. उस समय स्त्रियों को अधिकार ना मिलते देख और कट्टरपथिंयों के चौतरफा दबाब और तानाशाही पूर्ण विरोध देख वे बेहद निराश हो गए.पर इसके बावज़ूद भी वह स्त्रियों की स्वतंत्रता और समानता जैसे मूल्यों और सिद्धांतो पर अडिग रहते हुए इन धार्मिक कट्टरपंथी,
जातिवादी और मनुवादियों का अकेले ही पूरी ताकत से मुकाबला करते रहे. इस बिल मे जायदाद, उत्तराधिकार, गोद लेना, भरण –पोषण, विवाह के माध्यम से लैंगिक समानता की मांग की गयी थी. पर ये समता की बातें कट्टरपंथियों को जरा भी रास नही आई.उस समय सरदार पटेल और राजेन्द्र प्रसाद खुलकर हिंदू कोड बिल के विरोध में सामने आ गए थे. इन नेताओं का मानना था कि ‘हिन्दू कोड बिल’ पास होने से हिन्दू समाज का मूल ढांचा ही ढह जाएगा. और तो और इस ढांचे को बचाने के लिए ‘ऑल इंडिया वीमेंन्स कांफ्रेंस’ तक ने हिन्दू कोड बिल का खुलकर विरोध किया था.अंततः इन प्रतिक्रियावादियों के कट्टर विरोध के चलते 1951 मे डॉ. अम्बेडकर ने संसद में अपने हिन्दू कोड बिल के मसौदे को रोके जाने के खिलाफ दुःख और रोष प्रकट करते हुए मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया.क्या आज हम कल्पना भी कर सकते है कि कोई स्त्रियों की हियायत में उतर कर अपना पद-प्रतिष्ठा सब दांव पर लगा दे?
भारतीय समाज में आज तक जो भी स्त्रियों के पक्ष में लड़ाई लड़ी गई थी या लड़ी जा रही है क्या वह डॉ अम्बेडकर के इतने बडे योगदान और त्याग के बिना संभव थी ?दुख और गुस्सा इस बात है कि हिन्दू कोड़ बिल से लेकर आज तक भारत के मूलनिवासी बहुजन (जिन्हें ब्राह्मणवादी मीडिया “दलित” नाम से सम्बोधित करता है)यों और स्त्रियों के हक, सम्मान और अस्मिता पर लगातार हमले होते रहे है. जिसकी मूल जड़ धर्म में छिपी हुई है.इसी धर्म को नकारने और स्त्री की आजादी का बिगुल बजाने 25 दिसम्बर को अम्बेडकर द्वारा ‘मनुस्मृति दहन’ किया गया. डा. अम्बेडकर देश की तरक्की का मानदंड स्त्रियों की तरक्की से देखते थे। ऐसे में इन प्रगतिशीलों से यह पूछा जाना चाहिए कि क्या दामिनी के हक में खड़े होने के लिए उन्हें संविधान दिवस या देश की पहली शिक्षिका सावित्री बाई के अलावा और कोई दिन क्यों नही दिखता?भारत में बहुत से ऐसे त्यौहार व तथाकथित प्रतिष्ठित नायक हुए हैं जो स्त्री विरोधी रहे है. फिर क्यों नही इन त्यौहारों और इन नेताओं के जन्मदिन- मरणदिन को बायकॉट या विरोध करने के लिये इस्तेमाल किया गया?गौरतलब है कि पिछले कुछ समय से भारत के मूलनिवासी बहुजन (जिन्हें ब्राह्मणवादी मीडिया “दलित” नाम से सम्बोधित करता है)यों में अपने अधिकारों के प्रति बढ़ी जागरूकता और उसके लिए संघर्ष करने की जिद्द से चरमपंथियों जिनमें तथाकथित प्रगतिशील-बुद्धिजीवी भी हैं की रातों की नींद उड़ी हुई है. वे पूरे मनोयोग से साम-दाम-दण्ड-भेद से इस जुनूनी जिद्द को दबाना चाहते हैं. इसका सबसे सरल और मारक तरीका है भारत के मूलनिवासी बहुजन (जिन्हें ब्राह्मणवादी मीडिया “दलित” नाम से सम्बोधित करता है) प्रतीकों, उनके नायकों उनके दिनों पर प्रहार या फिर कब्जा जमाकर करके उनके मनोबल को तोड़ने की कोशिश करना.यह अनायास ही नहीं कि रोज कहीं ना कहीं से अम्बेडकर की मूर्तियां तोड़ने की खबरें आती रहती है.
भारत के मूलनिवासी बहुजन (जिन्हें ब्राह्मणवादी मीडिया “दलित” नाम से सम्बोधित करता है) स्त्रियों के जगह-जगह अपमान और बलात्कार की घटनाएं इसकी साक्षी है, और इन अत्याचारों पर घोर चुप्पी लगा जाना इस बात की और भी अधिक पुष्टि करता है.6 दिसम्बर को जब पूरा देश अपने ‘नायक’ का परिनिर्वाण मनाता है, उस दिन सोची-समझी साजिश के तहत बाबरी मस्जिद गिराना भारत के मूलनिवासी बहुजन (जिन्हें ब्राह्मणवादी मीडिया “दलित” नाम से सम्बोधित करता है)-मुस्लिम एकता और अस्मिता पर एक साथ प्रहार था.आरक्षण, भ्रष्टाचार अथवा बलात्कार या फिर किसी घोटाले की बात करने वाले लोग और उनका नेतृत्व सबसे पहले संविधान की धज्जियां उडाने से नहीं चूकता.आज अगर संविधान गलत हाथों में है और उसका दुरुपयोग हो रहा है तो इसमें संविधान बदलने,हटाने या बॉयकाट करने से हल नही निकलने वाला.अगर संविधान दिवस पर सोनी सोरी के यौनांगों में पत्थर डालने वाले अंकित गर्ग को भारतीय सरकार पुरस्कृत करती है तो यह सत्ता का चरित्र है, संविधान का चरित्र नहीं है. संविधान तो हमें सोनी सोरी के हक में कानूनी लड़ाई लड़ने का हक देता है.गौरतलब है कि बाबा साहेब ने संविधान सौपते हुए कहा था- ‘संविधान चाहे जितना भी अच्छा क्यों ना हो, यदि उसे लागू करने वालों की नियत अच्छी ना हो तो अच्छा संविधान भी बुरा बन जाता है’.इसलिए हमारी लड़ाई संविधान का आपहरण करने वालों के खिलाफ होनी चाहिए ना कि उस संविधान के जो भारत के मूलनिवासी बहुजन (जिन्हें ब्राह्मणवादी मीडिया “दलित” नाम से सम्बोधित करता है)यों -वंचितों-शोषितो-स्त्रियों को समता-समानता-स्वतंत्रता देकर उनको उनके हकों दिलाने की हिमायत में खड़ा है.
अनीता भारती हिंदी की एक विख्यात शख्सियत हैं जिनकी कविताएं, कहानियाँ और आलेख मुख्यधारा की पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे हैं.
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