भारत का अधिकतर लिखित इतिहास झूठ का पुलिंदा है जिसे धर्म के ठेकेदारों और राजा रजवाड़ों के चाटुकारों ने गुणगान के रूप में लिखा है. इसमें आज की शूद्र जातियों के वीरतापूर्ण, कर्मठ, वफादार व गौरवशाली इतिहास को छोड़ दिया गया है या बिगाड़ कर लिखा गया है. बौद्ध शासकों के बाद के शासकों की विलासितापूर्ण जीवनशैली तथा प्रजा के प्रति निर्दयी व्यवहार को छिपा कर उनके मामूली किस्से-कहानियों को बढ़ा-चढ़ा कर कहा गया है.
गत कुछ दशकों में दलित समाज कुछ शिक्षित हुआ है और उसमें जानने की इच्छा बढ़ी है, इसी सिलसिले में सच्चा इतिहास जानने और लिखने का उद्यम भी किया जा रहा है.
मेघवंश समाज के अतीत को भी खंगाला गया है. तथ्य सामने आ रहे हैं कि आज का मेघवंश अतीत में महाप्रतापी, विद्वान व कुशल बौध शासक था, जिसने उस काल में प्रेम, दया, करुणा व पंचशील का प्रचार किया. खेती, मज़दूरी, बुनकरी, चर्मकारी, शिल्पकला जैसे विभिन्न पेशों से ये जुड़े थे. इनके पूर्वज बौद्ध शासक थे. आक्रमणों के दौर में अहिंसा पर अत्यधिक ज़ोर देने से उनका पतन हुआ. कालांतर में युद्ध हारने के कारण इन्हें गुलाम और सस्ते मज़दूर बना लिया गया. एक इतिहास लिखा गया जिसमें इनके गौरवशाली इतिहास का उल्लेख जानबूझ कर नहीं किया गया.
यह पुस्तक इनके बौद्ध शासकों के वंशज होने के प्रमाण देती है. जिससे मालूम होता है कि मेघवाल व अन्य मेघवंशी जातियों के पुरखे काल्पनिक ऋषि नहीं बल्कि विद्वान बौद्ध शासक थे जिनका भारत के कई इलाकों में साम्राज्य रहा है. इस परिप्रेक्ष्य में यह पुस्तक सिंधुघाटी सभ्यता से लेकर आज तक की पूरी जानकारी देती है. इसमें मेघवंश के समृद्ध इतिहास और उसकी सामाजिक, आर्थिक व धार्मिक स्थिति पर गंभीर चिंतन-मनन करते हुए अलग-अलग नामों के कारण बिखरे पड़े इस समाज को एक ही नाम तले लाने का प्रयास किया गया है.
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