बुद्ध सारे संसार की ज्योति है। मानवता का इतिहास उन्हें महामानव के रूप में जानता है। उनके पास क्या नहीं था। राज सुख, वैभव सभी कुछ तो था लेकिन जब सत्य तत्व का बोध हुआ तो सब कुछ पल भर में त्याग दिया। उनका जीवन हमारे लिए आज भी एक प्रेरणा है। सत्य की खोज के लिए उन्होंने न केवल राज-सुख बल्कि परिवार का मोह भी छोड़ा। कहते हैं उन्हें बूढ़ा, रोगी और एक मृत व्यक्ति दिखा तो जीवन जीने की दृष्टि ही बदल गई। ऐसा कम ही होता है कि आम जनजीवन की घटनाओं को देखकर ही किसी के मन में वैराग्य जाग जाये।
गौतम बुद्ध ने जब एक व्यक्ति को मृत अवस्था में देखा तो उन्हें बोध हुआ कि यह शरीर और इससे संबंधित नाते-रिश्ते नाशवान हैं। तब उन्होंने लोक कल्याण के लिए सत्य की खोज का मार्ग अपनाया। संदेश दिया जो जाग गया वहीं बुद्ध है। जागने से तात्पर्य है सत्य तत्व को प्राप्त करने के लिए सक्रिय हो जाना। यही जागृत अवस्था है। हम उनसे अपने जीवन में अनेक गुण सीख सकते हैं। उनके उपदेश हमारे जीवन को सुखमय बनाने का रास्ता दिखाते हैं।
सारनाथ में बुद्ध ने पहली बार प्रवचन दिया था। उन्होंने कहा था कि केवल मांस खाने से ही आदमी अपवित्र नहीं होता बल्कि क्रोध अर्थात गुस्सा, व्यभिचार, छल-कपट, ईर्ष्या, आत्म प्रशंसा, दूसरों की निन्दा आदि से भी व्यक्ति अपवित्र होता है। अत: सच्ची पवित्रता वही है जिसमें ये दुगुर्ण न हों। व्यक्ति पवित्र तभी हो सकता है जब वह भ्रम से मुक्त हो। यदि दु:खों से दूर रहना है तो पवित्र जीवन बिताओ।
भगवान बुद्ध के अनुसार सच्चा सुख तभी मिलता है। जब हमारे जीवन में स्वार्थ के भाव न हो। जीवन में सत्य और शान्ति आने से ही सच्चा सुख मिलता है। सत्य ही सबको अशुभ से मुक्त कर सकता है। इस संसार में सत्य के अलावा कोई दूसरा मुक्तिदाता नहीं। हमेशा सत्य पर आस्था रखो और उसे जीवन में उतारो।
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