चाणक्य नीति (अध्याय-16) - Indian heroes

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Monday 27 November 2017

चाणक्य नीति (अध्याय-16)


  • आचार्य चाणक्य का मत है कि ऐसे पुत्रों को पैदा करना सर्वथा निरर्थक है, जिन्होंने इस जगत में जन्म लेने के पश्चात भी अपने उद्धार के लिए श्री नारायणदेव के चरण कमलों की उपासना नहीं किया। स्वर्ग लोक के कपाट खोलने में समर्थ धर्म का संग्रह भी नहीं किया और यथार्थ जीवन में तो क्या, स्वप्न में भी किसी रमणी के आलिंगन का सुख नहीं पाया, यानि न तो इस लोक में सुख भोगे और न ही परलोक के लिए कुछ किया, ऐसे लोगों का जन्म तो माता के जवानी रूपी जंगल को काटने के लिए कुल्हाड़ी के समान रूप ही हुआ। ऐसे पुत्रों को जन्म देकर मां भी अपना यौवन व्यर्थ या बेकार ही गंवाती है।
  • आचार्य चाणक्य का मत है कि किसी भी मनुष्य को वेश्याओं से सम्बन्ध नहीं रखने चाहिए। वेश्याएं धन प्राप्ति के लिए धन देने वाले का मनोरंजन करने के लिए हंसती गाती हैं। कामी पुरूष को अपनी ओर आकर्षित करती हैं, बातचीत किसी के संग करती हैं, विलासिता पूर्वक देखती किसी को हैं और मन में चिन्तन किसी और का करती हैं। धन के लालच या लोभ के कारण से उनका प्रपंची प्रेम किसी एक से नहीं अपितु अनेक व्यक्तियों से होता है, यह मिथ्या प्रेम प्रीति स्थायी कदापि नहीं होती।
  • आचार्य चाणक्य का मत है कि जो बुद्धीहीन या विवेकहीन मनुष्य अपनी अज्ञानता तथा अंधा मोह होने के कारण से यह समझता है, कि अमुक सुन्दरी या अप्सरा एकमात्र उसमें अनुरक्त है, तो वह अपनी धूर्तता के कारण उसके अधीन या गुलाम होकर, मनोरंजन के लिए पाले गए कुत्ते के समान उसके संकेतों पर नाचने के लिए बाध्य होता है।
  • धन प्राप्ति के पश्चात् सभी को घमंड हो जाता है, ऐसा कोई मनुष्य इस जगत् में पैदा नहीं हुआ, जिसे प्रचुर धन-संपदा हासिल होने के पश्चात् भी घमंड ना हुआ हो। विषयों में आसक्त समस्त प्राणियों को पग-पग पर अनेक विपत्तियां झेलनी पड़ती हैं, किसी भी मनुष्य का जीवन संकट से पृथक नहीं रहा। अप्सराएं या सुन्दर स्त्रियां अपने हाव-भाव से सभी के मन को अपने वशीभूत कर लेती हैं। अप्सराएं या स्त्रियां अपने हाव-भाव से सभी के मन को अपने वशीभूत कर लेती हैं। इस जग में शायद ही ऐसा कोई मनुष्य हुआ हो, जिसका मन खूबसूरत स्त्रियों से न जीता गया हो। कोई भी मनुष्य कभी भी सम्राट का प्यारा नहीं रहा। राजा लोग किसी व्यक्ति विशेष से नहीं, उससे सिद्ध होने वाले कार्य से स्नेह करते हैं। जगत के सभी समस्त प्राणधारी काल के ग्रास हैं। काल से कोई नहीं बच सका। किसी भी याचक को सम्मान हासिल नहीं होता और दुर्जन के जाल में फंसकर कोई भी सज्जन व्यक्ति अपने ठिकाने या लक्ष्य पर कुशलतापूर्वक नहीं पहुंच पाता।
  • चाणक्य का मत है कि अपने गुणों से ही कोई व्यक्ति ऊंचा या श्रेष्ठ बनता है, यानि मान-सम्मान, प्रतिष्ठा के काबिल बनता है, केवल सर्वोच्च स्थान पर विराजकर ऊंचा नहीं माना जाता। उदाहरणार्थ- किसी भवन की ऊंची चोटी पर बैठने से कौआ गरूड़ नहीं बन जाता। सत्य तो यह है कि गुणों से ही स्थान की प्रतिष्ठा होती है। स्थान से किसी गुणी मनुष्य की कोई प्रतिष्ठा नहीं होती है।

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