चाणक्य नीति (अध्याय-4) - Indian heroes

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Thursday, 23 November 2017

चाणक्य नीति (अध्याय-4)



  • जीवनकाल, सुख-दुःख, विद्या एवं मृत्यु का पल व स्थान आदि सभी ईश्वर या परमात्मा के अधिकार क्षेत्र हैं, नर के अधीन नहीं। विधाता ये पांच बातें या कारक तत्व मनुष्य के पैदा होने से पूर्व ही निश्चित कर देता है, अतः इन सभी के विषय में मनुष्य को चिन्ताग्रस्त नहीं रहना चाहिए और न ही झंझट में पड़ना चाहिए।
  • मनुष्य को जीवित रहते अधिक से अधिक या ज्यादा से ज्यादा पुण्य कर्म कर लेने चाहिए, मृत्यु के बाद वह क्या कर्म कर सकता है?
  • चाणक्य के मतानुसार विद्या को जहां तक प्रयास हो सके सीखना ही चाहिए, क्योंकि यह वह गुप्त संग्रहित धन है जो कभी समाप्त नहीं होता।
  • जिस प्रकार अकेला चन्द्रमा ही अंधकार को मिटा देता है, और असंख्य सितारे मिलकर भी अन्धकार को नहीं मिटा पाते, उसी प्रकार अनेक कुपुत्रों की तुलना में एक सुपुत्र ही परिवार को प्रकाश की ओर अग्रसर करता है।
  • दीर्घ आयु वाला मूर्ख पुत्र पैदा होने पर भी उसकी अपेक्षाकृत जन्म लेते ही मर जाने वाला पुत्र श्रेष्टतम होता है, क्योंकि आंखों के समक्ष मृत पुत्र कम समय के लिए दुःखदायी होता है मगर मूर्ख पुत्र जब तक जीवित रहता है तब तक दुखी रखकर जलाता है।
  • आचार्य चाणक्य के अनुसार बुरे गांव का वास, नीच वंश की सेवा, बुरा भोजन और कलह स्वभाव वाली पत्नी तथा मूर्ख पुत्र और विधवा पुत्री- ये छह बिना अग्नि के देह को तपाकर राख करते हैं।

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