चाणक्य नीति (अध्याय-7) - Indian heroes

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Friday, 24 November 2017

चाणक्य नीति (अध्याय-7)



  • बुद्धीमान मनुष्य वही है, जिसमें सहनशक्ति विद्यमान होती है, वह अपने धन को नष्ट होने से प्राप्त दुःख, किसी से ठगे जाने या किसी के द्वारा अपमान किए जाने पर अपना दुःख किसी से जाहिर नहीं करता।
  • जो व्यक्ति धन-धान्य के लेन-देन में, विद्या या किसी प्रकार के गुण सीखने में, खाने-पीने और हिसाब-किताब में शर्म कदापी नहीं रखते वे सदैव सुखी रहते हैं।
  • सन्तोष रूपी अमृत से तृप्त और शांतचित रहने वाले पुरूषों को जिस सुख-छाया की प्राप्ति होती है, इधर-उधर दौड़ लगाने और व्यर्थ भटकने वाले कंजूस व्यक्तियों को वह सुख-शान्ति प्राप्त नहीं हो सकती।
  • अपनी पत्नी, भोजन और धन इन तीन वस्तुओं से सन्तुष्ट होना चाहिए, परन्तु अध्ययन करने, तप करने और देने इन तीन बातों से असंतुष्ट रहना चाहिए।
  • अग्नि, गुरू, ब्राह्मण, गौ, कुंआरी कन्या, बूढ़े अथवा शिशु को कदापि पैर नहीं लगाना चाहिए। उन्हें पैर से स्पर्श करना वर्जित है या अनुचित है, ऐसा करना उनके प्रति अपमान तो है ही, उपेक्षा भाव को भी प्रकट कर देना है। इनको पैरों से स्पर्श करना मूर्खता के समान है और मूर्खता को प्रदर्शित करना है, क्योंकि ये समस्त सभी आदर के पात्र, पूजनीय और प्रिय सम्बन्ध रखते हैं।

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