- मनुष्य के समस्त ज्ञान का आधार श्रवण यानि सुनना है। वेद सुनने के बाद ही मनुष्य अपने दायित्वों का सही मूल्यांकन निश्चित करता है। विद्वानों के प्रवचन सुनकर ही मनुष्य अपने मूर्खतापूर्ण आचरण का आंकलन कर त्याग करता है। गुरूओं को सुनने से ही साधक शिष्य जगत के मकड़ जंजाल से मुक्त होने का निवारण कर सकेगा यानि मोक्ष प्राप्ति का मार्ग तय करता है।
- पक्षियों में काला कौआ, पशुओं में कुत्ता, ऋषियों में क्रोधी तथा मनुष्यों में चुगली करने वाला चाण्डाल कहलाता है।
- भ्रमणकारी राजा, ब्राह्मण तथा योगी सर्वत्र सम्मानित होते हैं। लेकिन अकारण विचरण करने वाली स्त्री पथभ्रष्ट हो जाती है।
- इस जगत में जग की यही रीति है कि धन-संपत्ति पास होने पर मनुष्यों के मित्रों बन्धु-बांधवों की संख्या में वृद्धी हो जाना निश्चित है, धन की प्रचुरता ही मनुष्य को समाज में अधिक यश दिलवाती है। धनाढ्य मनुष्य ही शान-ओ-शौकत के साथ रह सकता है। धन सब कुछ नहीं किन्तु धन के बिना भी जीवन यात्रा रूपी गाड़ी नहीं दौड़ सकती। सत्य तो यह है कि इस जगत में केवल धनवान को ही विद्वान और सम्मानित विख्यात मनुष्य समझा जाता है। धनहीन के गुण न केवल उपेक्षित हो जाते हैं, अपितु उसे तो मनुष्य ही नहीं समझा जाता। दरिद्र समझकर, अछूत समझकर तथा अपने संगठन द्वारा बेइज्जती की जाती है, औकात बताई जाती है, धनहीन मनुष्य को सभी हीन दृष्टि से देखते हैं।
- जैसी होनी होती है, उसी प्रकार मनुष्य की मति भी वैसी ही हो जाती है। वैसे ही साधन बनते हैं और मित्र रूप में सहायक भी वैसे ही मिल जाते हैं। व्यक्ति अपने भाग्यचक्र को परिवर्तित कर सकता है, मगर शर्त यह है कि वह पुरूषार्थ करता रहे।
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