bhagat singh in hindi story – भगत सिंह का एक संस्मरण - Indian heroes

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Tuesday, 7 November 2017

bhagat singh in hindi story – भगत सिंह का एक संस्मरण


 bhagat singh in hindi story पंजाब के लायलपुर जिले के बंगा नाम के एक गाँव के अंदर सरदार किशनसिंह के यंहा एक बालक ने जन्म लिया नाम रखा गया – भगत सिंह , भगत सिंह के परिवार के सभी लोग बड़े वीर और साहसी थे और सब के सब ने बचपन से ही देशभक्ति का पाठ पढ़ा हुआ था | भगत सिंह भी घर में उनकी बाते सुनते और देशभक्ति के वीरो की साहसी कहानियों को सुनते और मन ही मन में उन जेसा ही बनने की बहादुर और वीर बनने की इच्छा रखते |

भगत सिंह बचपन से ही बहादुर साहसी और निडर थे उनको हिम्मत को देखकर उनसे बड़ी उम्र वाले बच्चे भी उनसे घबराते थे | एक बार अपने पिता के साथ वो खेत पर गये तो उन्होंने अपने पिता से सवाल किया कि पिताजी ये खेत में आप लोग क्या करते तो उन्होंने कहा कि हम लोग बीज बोते है जिस से फसल होती है और ढेर सारा अनाज भी होता है इस पर उन्होंने अपने पिता से सवाल किया कि पिताजी अगर ऐसा ही है तो आप लोग खेत में बंदूके क्यों नहीं बोते हो ताकि अंग्रेजो को मारने के भी काम आये और हमारे पास ढेर सारी बंदूके होंगी तो हम डटकर अंग्रेजो का सामना कर पाएंगे |
सरदार किशन सिंह ने अपने बेटे के मुहं से ऐसी बाते सुनी तो वो पहले तो हैरान हो गये लेकिन मन ही मन इस बार पर खुश भी हुए कि उनका बेटा देशभक्ति की राह पर जा रहा है | भगत सिंह जेसे जेसे बड़े होते गये उनके मन में देशभक्ति की भावना घर करने लगी और वो देश पर मर मिटने के लिए हमेशा तेयार रहते थे | यही सोचते रहते कि जाने कब वो दिन आयेगा जब मैं देश पर मर मिटने वाला एक सिपाही बनूँगा | भगत सिंह ने स्थानीय dav स्कूल से ही अपनी दसवी क्लास को पास किया और उसके बाद वो नेशनल कॉलेज में भर्ती हो गये और यही पर उनकी मित्रता सुखदेव सिंह यशपाल और भगवतीचरण से हुई | ये सब तो क्रन्तिकारी विचारो वाले थे ही साथ ही कॉलेज के शिक्षक भी क्रन्तिकारी विचारो वाले थे तो इसलिए उनका भी इन सब पर बहुत असर पड़ा |
एफ ए पास करने के बाद भगत सिंह के विवाह की बात भी चली इस पर ये वंहा से निकलकर दिल्ली चले गये और वंहा से कानपूर के लिए निकल गये और वंहा पर गणेशशंकर के एक अख़बार ‘प्रताप’ में काम करने लगे | इसी बीच उन्होंने बंगाल के एक क्रांतिकारी की तारीफ में भाषण दिया जिसके बाद खुद भी क्रांति की आग में कूद पड़े | धीरे धीरे भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद पूरे देश में प्रसिद्द हो गये और एक दिन देश की आजादी के लिए लड़ते लड़ते बड़ी ख़ुशी ख़ुशी फांसी के फंदे को भी इन्होने हँसते हँसते गले लगा लिया |उनके मन में देशभक्ति की जो सच्ची लगन थी उन्होंने उसे पूरा करने के लिए कोई भी कसर बाकि नहीं रखी
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