सिद्धार्थ और देवदत्त – गौतम बुद्ध के बचपन की कहानी - Indian heroes

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Sunday, 19 November 2017

सिद्धार्थ और देवदत्त – गौतम बुद्ध के बचपन की कहानी

एक दिन राजकुमार सिद्धार्थ अपने चचेरे भाई देवदत्त के साथ बाग में घुमने के लिए गये। जहां सिद्धार्थ कोमल हृदय का बालक था वहीं देवदत्त झगडालु व कठोर स्वभाव का था।
सिद्धार्थ की सभी प्रशंसा करते थे। देवदत्त की प्रशंसा कोई नहीं करता था। इसलिए देवदत्त मन ही मन सिद्धार्थ से जलता था। (Story Kids) जहाँ वे दोनां घुम रहे थे, उनसे थोडी ही दूरी पर एक हंस उड रहा था।
उस हंस को देखकर सिद्धार्थ बहुत प्रसन्न हो रहा था। तभी देवदत्त ने कमान पर तीर चढाया और हंस की ओर छोड दिया। तीर सीधा जाकर हंस को लगा। वह घायल हो गया और छटपटा कर नीचे गिर पडा।
सिद्धार्थ ने दौडकर उस घायल हंस को उठाया। उसने हंस के घायल शरीर से बह रहे लहु को साफ किया। और उसे पानी पिलाया, तभी देवदत्त वहां आ पहुंचा । उसने क्रोध से सिद्धार्थ की ओर देखा और बोला- इस हंस को चुपचाप मुझे दे देा सिद्धार्थ इसे मैंने तीर मारकर नीचे गिराया है
नहीं! सिद्धार्थ ने हंस की पीठ सहलाते हुए उत्तर दिया- मैं इस हंस को तुम्हे नही दे सकता। तुम निर्दयी हो तुमने इस निर्दोष हंस पर तीर चलाया है। यदि मैं इसे न बचाता तो इस बेचारे की जान चली जाती ।
देखो सिद्धार्थ! देवदत्त उसे घुरकर बोला यह हंस मेरा है। इसे मैंने तीर मारकर नीचे गिराया है। इसे चुपचाप मुझे देदो। यदि नहीं दोगे तो मैं राज दरबार में जाकर तुम्हारी शिकायत करूंगा।
सिद्धार्थ ने उसे हंस देने से साफ-साफ़ मना कर दिया। देवदत्त राजा शुद्धोदन के दरबार में जा पहुचा। और सिद्धार्थ की शिकायत की। शुद्धोदन ने उसकी शिकायत को ध्यानपूर्वक सुना फिर सिद्धार्थ को बुलावा भेजा।
कुछ ही देर में सिद्धार्थ हंस को लेकर राज दरबार में उपस्थित हो गया। राज दरबार के उचें सिंहासन पर राजा शुद्धोदन बैंठे थे आसपास के नीचे आसनो पर राज्यमंत्री, तथा अन्य पदाधिकारी बैठे थे। कई सैनिक हथियार लिए द्वार के निकट खडे थे।
शुद्धोदन के संकेत करने पर देवदत सिर झुकाकर बोला- महाराज! जो हंस इस समय सिद्धार्थ के पास हैं वह मेरा हैं, इसे मैंने तीर मारकर प्रथ्वी पर गिराया था। सिद्धार्थ ने इसे उठाकर इस पर अपना अधिकार कर लिया है। यह हंस मेरा हैं कृपया इसे मुझे दिलाया जाये।

राजा शुद्धोदन ने सिद्धार्थ की ओर देखा और बोलने की ओर संकेत दिया। सिद्धार्थ ने सिर झुकाकर शांत स्वर में कहा- महाराज! यह हंस निर्दोष हैं यह बिना किसी को कोई कष्ट दिये उडा जा रहा था, देवदत्त ने इसे तीर मारकर घायल कर दिया। मैंने इसका उपचार किया है। इसके प्राण बचाये है। मैं समझता हूं कि प्राण लेने वाले से अधिक प्राण बचाने वाले का अधिकार होता है। मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कि यह हंस मेरे पास ही रहने दिया जाये। मैं इसे बिलकुल स्वस्थ करके आकाश में उडा देना चाहता हूं।

शुद्धोदन ने अपने सभा-सदों से विचारविमर्श किया। वे सभी एक ही स्वर में बोले महाराज! राजकुमार सिद्धार्थ का कहना बिलकुल ठीक है। जीवन लेने वाले से बचाने वाले का अधिक अधिकार होता है। अतः हंस राजकुमार सिद्धार्थ के पास ही रहने देना चाहिए। राजा शुद्धोदन ने सभासदों की बात मान ली ।
उन्होंने सिद्धार्थ से कहा- इस हंस पर तुम्हारा अधिकार हैं, तुम इसे ले जा सकते हो। सिद्धार्थ हसं को लेकर प्रसन्नतापूर्व अपने भवन की ओर चला गया। उसने प्रेमपूर्वक उस हंस का उपचार किया। जब वह बिलकुल ठीक हो गया तो उसने उसे उसके घोंसले की ओर उडा दिया। देवदत सिद्धार्थ से पहले ही ईष्र्या करता था। इस घटना के बाद तो उसकी ईष्र्या और भी भडक उठी। (Kids Story moral in hindi)
यह सिद्धार्थ नाम का बालक आगे चलकर गौतम बुद्ध बना, उनमें यह लक्षण बचपन से ही थे | में अधिक से अधिक समय एकांत में बिताया करते थे |

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