अच्छे कामों को आरम्भ करने का कोई समय नहीं होता। प्रत्येक सफल आदमी का यही आदर्श वाक्य होता है कि कार्य करने के लिए उठ जाओ। इस आदर्श से आज के नवयुवकों को विनाश से बचाया जा सकता है।
हम जानते हैं कि बहुत से लोग टालने की आदत, सुस्ती, आलस्य और लेट लतिफी के कारण इतना दुःख पाते हैं जितना किसी और कारण से नहीं पाते। कार्य-शक्तियों को नष्ट करने के लिए इससे बढ़कर गुनाह कोई और नहीं होता। इससे आदमी की कार्य करने की ताकत खत्म हो जाती है। तो आइये time के importance को इस कहानी के माध्यम से समझते है-
'कार्नेलियस वीडर' निश्चित समय पर किसी काम के न होने को अपराध समझता था। एक बार उसने एक नवयुवक से मिलने का समय तय किया। नवयुवक ने एक पद प्राप्त करने की सहायता माँगी थी। कार्नेलियस ने नवयुवक से कहा तुम दस बजे मेरे दफ्तर में आ जाओ वही से मैं तुम्हें साथ ले जाकर रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष से मिलवाकर तुम्हें क्लर्की की नौकरी दिलवा दूँगा। दूसरे दिन वह लड़का कार्नेलियस के दफ्तर में पहुँचा तो लेकिन दस बजकर बीस मिनट हो चुके थे।
कार्नेलियस महाशय उस समय अपने दफ्तर में नहीं थे। बल्कि किसी मीटिंग में भाग लेने गये थे। इस प्रकार उस युवक की भेंट उस दिन कार्नेलियस से नहीं हुई।
कुछ ही दिनों पश्चात् वह युवक कार्नेलियस से भेंट करने में सफल हो गया। जैसे ही वह उसके कमरे में गया उसे देखते ही कार्नेलियस ने पूछा-
'क्यों भई उस दिन तुम नौकरी के लिए आने वाले थे, क्यों नहीं आये?'
'महोदय! मैं तो आया था पर आपसे भेंट न हो सकी।'
'क्या तुम दस बजे आये थे?'
'जी नहीं, मैं थोड़ा लेट था। यानी दस बजकर बीस मिनट पर पहुँचा था।'
'मगर मैंने तो तुम्हें दस बजे बुलाया था।'
'हां, वह तो मैं जानता हूँ, मगर बीस मिनट से क्या फर्क पड़ता है? इतने बड़े शहर में इतना लेट तो हर आदमी हो जाता है।'
कार्नेलियस ने युवक से कहा -
''देखो नौजवान, मैंने तुम्हारे लिए ही रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष से मिलने के लिए समय लिया था। मगर तुमने अपना काम करवाने के लिए भी समय नहीं निकाला। तुम तो अनुमानतः यही सोच रहे होंगे कि मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा, क्यों मैं किसलिए तुम्हारी प्रतीक्षा करूँ? यह काम तुम्हारा था या मेरा ? जब तुम अपने ही काम के लिए समय से नहीं निकाल सकते तो कल को किसी और के काम क्या आओगे। दफ्तर का काम कैसे करोगे? अब जाओ और आराम करो। पहले समय की पाबंदी करना सीखो फिर दूसरे काम करो। मैं समय के पाबन्द न होने वाले लोगों को पसन्द नहीं करता।''
अब आप ही देखिये कि समय देकर उस समय पर न पहुँचने का क्या परिणाम होता है? यानि आप कभी एक अच्छा अवसर खो देते हैं।
दोस्तों, समय की पाबन्दी का पालन करने से बढ़कर कोई योग्यता नहीं। जो व्यक्ति कामकाजी है, व्यस्त है, उससे बढ़कर अनिवार्य योग्यता और कोई नहीं हो सकती। जो व्यक्ति औरों के समय बचाने का ध्यान रखता है वह वास्तव में अपना ही समय बचाता है।
और -
जो अपने समय का महत्व नहीं रखता वह दूसरों का समय नष्ट करने में भी परहेज़ नहीं करता। यही कारण है कि जो लोग आगे बढ़ना जानते है, वे किसी भी ऐसे व्यक्ति को अपने पास फटकने नहीं देते जो उनके समय को नष्ट करें, ना ही ऐसे लोग उन्हें अपना मित्र बनाते हैं।
हम जानते हैं कि बहुत से लोग टालने की आदत, सुस्ती, आलस्य और लेट लतिफी के कारण इतना दुःख पाते हैं जितना किसी और कारण से नहीं पाते। कार्य-शक्तियों को नष्ट करने के लिए इससे बढ़कर गुनाह कोई और नहीं होता। इससे आदमी की कार्य करने की ताकत खत्म हो जाती है। तो आइये time के importance को इस कहानी के माध्यम से समझते है-
'कार्नेलियस वीडर' निश्चित समय पर किसी काम के न होने को अपराध समझता था। एक बार उसने एक नवयुवक से मिलने का समय तय किया। नवयुवक ने एक पद प्राप्त करने की सहायता माँगी थी। कार्नेलियस ने नवयुवक से कहा तुम दस बजे मेरे दफ्तर में आ जाओ वही से मैं तुम्हें साथ ले जाकर रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष से मिलवाकर तुम्हें क्लर्की की नौकरी दिलवा दूँगा। दूसरे दिन वह लड़का कार्नेलियस के दफ्तर में पहुँचा तो लेकिन दस बजकर बीस मिनट हो चुके थे।
कार्नेलियस महाशय उस समय अपने दफ्तर में नहीं थे। बल्कि किसी मीटिंग में भाग लेने गये थे। इस प्रकार उस युवक की भेंट उस दिन कार्नेलियस से नहीं हुई।
कुछ ही दिनों पश्चात् वह युवक कार्नेलियस से भेंट करने में सफल हो गया। जैसे ही वह उसके कमरे में गया उसे देखते ही कार्नेलियस ने पूछा-
'क्यों भई उस दिन तुम नौकरी के लिए आने वाले थे, क्यों नहीं आये?'
'महोदय! मैं तो आया था पर आपसे भेंट न हो सकी।'
'क्या तुम दस बजे आये थे?'
'जी नहीं, मैं थोड़ा लेट था। यानी दस बजकर बीस मिनट पर पहुँचा था।'
'मगर मैंने तो तुम्हें दस बजे बुलाया था।'
'हां, वह तो मैं जानता हूँ, मगर बीस मिनट से क्या फर्क पड़ता है? इतने बड़े शहर में इतना लेट तो हर आदमी हो जाता है।'
कार्नेलियस ने युवक से कहा -
''देखो नौजवान, मैंने तुम्हारे लिए ही रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष से मिलने के लिए समय लिया था। मगर तुमने अपना काम करवाने के लिए भी समय नहीं निकाला। तुम तो अनुमानतः यही सोच रहे होंगे कि मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा, क्यों मैं किसलिए तुम्हारी प्रतीक्षा करूँ? यह काम तुम्हारा था या मेरा ? जब तुम अपने ही काम के लिए समय से नहीं निकाल सकते तो कल को किसी और के काम क्या आओगे। दफ्तर का काम कैसे करोगे? अब जाओ और आराम करो। पहले समय की पाबंदी करना सीखो फिर दूसरे काम करो। मैं समय के पाबन्द न होने वाले लोगों को पसन्द नहीं करता।''
अब आप ही देखिये कि समय देकर उस समय पर न पहुँचने का क्या परिणाम होता है? यानि आप कभी एक अच्छा अवसर खो देते हैं।
दोस्तों, समय की पाबन्दी का पालन करने से बढ़कर कोई योग्यता नहीं। जो व्यक्ति कामकाजी है, व्यस्त है, उससे बढ़कर अनिवार्य योग्यता और कोई नहीं हो सकती। जो व्यक्ति औरों के समय बचाने का ध्यान रखता है वह वास्तव में अपना ही समय बचाता है।
और -
जो अपने समय का महत्व नहीं रखता वह दूसरों का समय नष्ट करने में भी परहेज़ नहीं करता। यही कारण है कि जो लोग आगे बढ़ना जानते है, वे किसी भी ऐसे व्यक्ति को अपने पास फटकने नहीं देते जो उनके समय को नष्ट करें, ना ही ऐसे लोग उन्हें अपना मित्र बनाते हैं।
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