सत्कर्म की ताकत से कुछ भी संभव - Indian heroes

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Tuesday 14 November 2017

सत्कर्म की ताकत से कुछ भी संभव



दुनिया की कोई भी शिक्षा प्रणाली एक इनसान को दूसरे से भेदभाव करना नहीं सिखाती। यदि हम शिक्षित होकर भी दंभ, अहंकार और भेदभाव की दुनिया में जीते हैं, तो इसका स्पष्ट कारण है कि हम डिग्रीधारी तो हैं, लेकिन शिक्षित नहीं। सच तो यह है कि जिस इनसान ने भेदभाव किया, वह कभी भी सत्य और ईश्वर के करीब नहीं जा सकता। मुझे एक सच्ची कहानी याद आती है, जो इस विषय को और करीब लेकर जायेगी।

एक बार सम्राट अशोक अपने दरबारियों के साथ राज्य के पास जंगल से गुजर रहे थे। जंगल के बगल से तेज धार से नदी बह रही थी। नदी में उफान बहुत था और उसकी धारा बेहद खतरनाक तरीके से तेजी से बह रही थी। तभी सम्राट ने अपने राज पुरोहित से कहा- आप इतने बड़े विद्वान हैं, क्या आप नदी की इस धारा को उलटी दिशा में मोड़ सकते हैं? राज पुरोहित ने कहा, जी महाराज, अभी लीजिये। यह कर राज पुरोहित ने मंत्रों का जाप शुरू कर दिया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अंत में थक-हार कर राज पुरोहित किनारे चुपचाप बैठ गये। अब सम्राट ने वहां एलान किया कि 'क्या कोई ऐसा व्यक्ति, इस नदी की धारा को उल्टा बहा कर अपनी विद्वता साबित कर सकता है?' यह बात वहीं बैठी एक महिला सुन रही थी, जो घर-घर जाकर लोगों के शौचालयों की सफाई करती थी। वह गंदगी अपने सिर पर ढोकर बाहर फेंकती थी। महिला सम्राट के सामने आयी और बोली, महाराज, मैं यह कर सकती हूं। सम्राट और राज पुरोहित के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। राज पुरोहित ने उसे डांटते हुए कहा, यह क्या दृढ़ता है, जो काम मेरे जैसा विद्वान पंडित नहीं कर सका, वह लोगों का मैला ढोनेवाली औरत करेगी? महिला ने कहा, महाराज, मैं इस काम को केवल अपने सत्कर्म के आधार पर कर सकती हूं, क्योंकि मैं जिनका गंदा साफ करने जाती हूं, उनमें कोई भेदभाव नहीं देखती, चाहे कोई ब्राह्मण हो या शूद्र या राजा या रंक, मेरे लिए सभी ईश्वर के बंदे हैं और उनमे कोई भेदभाव नहीं करती, जिससे मेरा सत्कर्म प्रबल होता है और मेरा मानना है कि जो भी व्यक्ति सत्कर्म से मजबूत है, वह दुनिया का कोई भी काम बड़ी सहजता से कर सकता है, इसलिए मुझे पूरा विश्वास है कि यह काम मैं कर सकती हूं।
महिला की बात सुनकर सम्राट प्रभावित हुए। सम्राट ने उसे अपना काम करने का निर्देश दिया। महिला वहीं बैठ गयी और उसने कुछ मंत्रों का जाप किया। थोड़ी ही देर में नदी की धारा उलटी बहने लगी। यह देख सम्राट प्रसन्न हो गये और पुरस्कार देकर उस महिला को विदा किया। सम्राट ने घोषणा की, कि मेरे राज्य में किसी भी जाति द्वारा किसी के लिए भेदभाव की भावना न रखी जाये और सभी लोगों को समान दृष्टि से देखा जाये।

आज समय की मांग यह है कि जात-पात और भेदभाव को छोड़ कर केवल काबिलियत की कद्र की जाये। अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में यह जहर नहीं है, इसलिए उनके विकास की गति हमसे बहुत अधिक है। क्योंकि, हमारे वेदों ने भी हमेशा सत्कर्म की ही सिफारिश की है।



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