उगते अंकुर की तरह जियो - कविता - Indian heroes

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Thursday 22 December 2016

उगते अंकुर की तरह जियो - कविता


 स्वयं को पहचानो
चक्की में पिसते अन्न की तरह नहीं
उगते अंकुर की तरह जियो
धरती और आकाश सबका है
हवा प्रकाश किसके वश का है
फिर इन सब पर भी
क्यों नहीं अपना हक़ जताओ
सुविधाओं से समझौता करके
कभी न सर झुकाओ
अपना ही हक़ माँगो
नयी पहचान बनाओ
धरती पर पग रखने से पहले
अपनी धरती बनाओ।

  -सुशीला टाकभौरे


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