धर्म से संगठन है,संगठन से सुरक्षा है,भय से भक्ति है और धन से धर्म चलता है:
ये नियम है की भय से भक्ति होती है और धन से धर्म चलता है , बौध धर्म में न ही धन है न ही किसी इश्वर की शक्ति का भय, यही कारन है की लोग क्लासिकल डांस की तरह इसको अच्छा तो कहते हैं अपनाने का दिखावा भी करते हैं पर असल में अपनी जिन्दगी में नहीं अपनाते| समाज में तो खुद को बुद्धिस्ट कहेंगे पर मन्नत मांगने और उसके पूरे होने पर चड़ाव चडाने मंदिर ही जायेंगे | जिसकी मन्नत मांगते हैं उसे पाने की हर संभव कोशिश खुद करते है परिणामस्वरूप जब वो मिल जाती है तब नाम उस देवी देवता का होता है जिससे मनौती मांगी गई थी , कमाल है
साथिओं धर्म कितना भी अच्छा क्यों न हो पर उसे मानने वाले अगर कमजोर होंगे, तो उस धर्म की कोई पूछ नहीं
धर्म कितना भी गन्दा हो पर अगर उसे मानने वाले शक्तिशाली और संगठित हैं तो वही चलेगा और जीतेगा..समयबुद्धा
गरुड़ पुराण में सालों पहले ये लिख दिया गया था को “अगर आपके पास धन है तो आपके अवगुण भी छुप जायेंगे और अगर धन नहीं तो आपके सद्गुणों को भी पूछने वाला कोई नहीं होगा “
बौध धर्म की उन्नति बिना धनबल के संभव नहीं है, ये और बात है की आप लोग इसके सिधान्तों को अपने जीवन में उतरने तक ही सीमित रहते हैं और इस धर्म को मुकाबले लायक बनाने में रूचि नहीं रखते|इस सबका एक ही समाधान है- हर बुध पूर्णिमा को सभी अपने निकटतम बौध विहारों पर संगठित हों और यथाशक्ति दान दें | अधिक जानकारी के लिए इसी ब्लॉग का पोस्ट “बौध धर्म को कैसे सरक्षण दिया जाए ” जरूर पढ़ें और अपने लोगों तक पहुचाएं |
यदि आप खुद को जानते हैं पर अपने प्रतिद्वंदी को नहीं जानते तो आपकी हार निश्चित है
यदि आप खुद को नहीं जानते हैं पर अपने प्रतिद्वंदी को जानते हैं तो भी आपकी हार निश्चित है
पर यदि आप खुद को जानते हैं और अपने प्रतिद्वंदी को भी जानते है तो आपको जीतने से कोई नहीं रोक सकता…एक चाइनीज बौध भिक्षु
जिनसे आपके धर्म का मुकाबला है उनकी नीती सदीओं पहले भी कितनी उन्नत थी इसका उदाहरण निम्न लिखित चाणक्य निति एक एक छोटे से हिस्से में देखें :
ये नियम है की भय से भक्ति होती है और धन से धर्म चलता है , बौध धर्म में न ही धन है न ही किसी इश्वर की शक्ति का भय, यही कारन है की लोग क्लासिकल डांस की तरह इसको अच्छा तो कहते हैं अपनाने का दिखावा भी करते हैं पर असल में अपनी जिन्दगी में नहीं अपनाते| समाज में तो खुद को बुद्धिस्ट कहेंगे पर मन्नत मांगने और उसके पूरे होने पर चड़ाव चडाने मंदिर ही जायेंगे | जिसकी मन्नत मांगते हैं उसे पाने की हर संभव कोशिश खुद करते है परिणामस्वरूप जब वो मिल जाती है तब नाम उस देवी देवता का होता है जिससे मनौती मांगी गई थी , कमाल है
साथिओं धर्म कितना भी अच्छा क्यों न हो पर उसे मानने वाले अगर कमजोर होंगे, तो उस धर्म की कोई पूछ नहीं
धर्म कितना भी गन्दा हो पर अगर उसे मानने वाले शक्तिशाली और संगठित हैं तो वही चलेगा और जीतेगा..समयबुद्धा
गरुड़ पुराण में सालों पहले ये लिख दिया गया था को “अगर आपके पास धन है तो आपके अवगुण भी छुप जायेंगे और अगर धन नहीं तो आपके सद्गुणों को भी पूछने वाला कोई नहीं होगा “
बौध धर्म की उन्नति बिना धनबल के संभव नहीं है, ये और बात है की आप लोग इसके सिधान्तों को अपने जीवन में उतरने तक ही सीमित रहते हैं और इस धर्म को मुकाबले लायक बनाने में रूचि नहीं रखते|इस सबका एक ही समाधान है- हर बुध पूर्णिमा को सभी अपने निकटतम बौध विहारों पर संगठित हों और यथाशक्ति दान दें | अधिक जानकारी के लिए इसी ब्लॉग का पोस्ट “बौध धर्म को कैसे सरक्षण दिया जाए ” जरूर पढ़ें और अपने लोगों तक पहुचाएं |
यदि आप खुद को जानते हैं पर अपने प्रतिद्वंदी को नहीं जानते तो आपकी हार निश्चित है
यदि आप खुद को नहीं जानते हैं पर अपने प्रतिद्वंदी को जानते हैं तो भी आपकी हार निश्चित है
पर यदि आप खुद को जानते हैं और अपने प्रतिद्वंदी को भी जानते है तो आपको जीतने से कोई नहीं रोक सकता…एक चाइनीज बौध भिक्षु
जिनसे आपके धर्म का मुकाबला है उनकी नीती सदीओं पहले भी कितनी उन्नत थी इसका उदाहरण निम्न लिखित चाणक्य निति एक एक छोटे से हिस्से में देखें :
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