यह बात उस समय की है, जब ए.पी.जे. अब्दुल कलाम साहब मात्र 10 वर्ष की उम्र में पाचंवी कक्षा में पढ़ते थे. उनके स्कूल में एक बहुत ही बेहतरीन अध्यापक शिव सुबरमण्यिम अय्यर हुआ करते थे. उनकी क्लास को सभी बच्चे बहुत ही ध्यानपूर्वक Attend करते थे. एक दिन उन्होंने ब्लैक बोर्ड पर पंख फड़फड़ाते पक्षी का चित्र बनाया. जिसमें उन्होने पक्षी के सिर, पूंछ तथा पूरे शरीर को अंकित कर (उकेर कर) समझाया कि, पक्षी अपने आपको कैसे हवा में उठाते है, और उड़ान भरते है. उन्होंने यह भी समझाया कि उड़ान के वक्त वे कैसे दिशा बदलते है. करीब 25 मिनट तक के लैक्चर में उन्होंने बताया कि पक्षियों के उठाव, खिंचाव व 10, 20 या 30 पक्षी मिलकर अलग-अलग आकृतियां (Formations) किस प्रकार बनाते हैं. क्लास की समाप्ति पर उनहोंने जानना चाहा कि, कौन-कौन से बच्चे को अच्छी तरह समझ में आया, तब कलाम साहब ने कहा कि ’’मुझे समझ में नहीं आया. ’’ तब उन्होंने दूसरे बच्चों को पूछा तो ज्यादातर बच्चों ने यही जवाब दिया कि उन्हे भी समझ में नहीं आया. वे बच्चों के ऐसे प्रत्युतर (Response) के बावजूद भी सुबरमणियम सर असहज नहीं हुए. प्रतिबद्व अध्यापक (Comitted Teacher) होने के नाते उन्होंने बच्चों से कहा कि शाम को हम सब समुद्र तट पर चलेगें वहाँ पक्षियों को प्रकृतिक रूप से उड़ते हुए देखेंगें जिससे सारी बात समझ में आ जायेगी।
उस शाम को सुबरमणियम सर कलाम साहब की पूरी क्लास को रामेश्वरम् के समुद्र तट पर ले गये. पूरी क्लास ने आनन्द पूर्वक गरजती हुई समुद्री लहरों को रेतीले किनारों से टकराते हुए देखा, साथ ही पक्षियों को मिठी चहचहाट की आवाज करते हुए 10 से 20 के ग्रुप में विभिन्न आकृतियां ( थ्वतउंजपवदे) बनाकर उड़ते हुए देखा. पक्षियों को सुन्दर फोरमेशन में उड़ते हुए देखा तथा अध्यापक जी से उसका कारण समझा तो पूरी क्लास दंग (आश्चर्यचकित) रह गई, उन्होंने समझाया कि उड़ान भरते समय पक्षी किस तरह नजर आते हैं, पक्षी पंख फड़फड़ाते है तब उनकी पूंछ का झुकाव/मरोड़ कैसे चलता है. इससे बच्चों ने ध्यान से नोटिस किया कि पक्षी जिस दिशा में चाहते है उसी दिशा में उड़ते हुए मुड़ जाते हैं. उन्होने क्लास से अगला सवाल किया कि इन पक्षियों में इंजन कहाँ होता है और इन्हे शक्ति कहाँ से मिलती है कलाम साहब इस पर बताते हैं, ’’हमारे समझ में आ गया कि पक्षियों की जो इच्छा होती है, उसकी पूर्ती के लिये वे अपनी अंतः प्रेरणा से अपने शरीर से ही शक्ति प्राप्त करते हैं. यह सब बातें हमें 15 मिनट में ही समझ में आ गई.’’ आगे वे कहते है कि ’’ऐसे महान अध्यापक द्वारा हमें एक सैद्धांतिक पाठ को प्रायोगिक रूप से प्रकृति में उपलब्ध जीवन्त उदाहरण के साथ समझाया जिससे हमें पक्षियों की पूरी गतिकी (We understand whole Bird dynamics) समझ में आ गई.
कलाम साहब बताते हैं कि, ’’मेरे लिये यह घटना पक्षियों की उड़ान समझना मात्र नहीं रहा. पक्षियों की उड़ान मेरे अन्दर घुस (Enter) गई थी, और मेरे अन्दर विशेष प्रकार के भाव जागृत हो गये और मैने तय कर लिया कि मेरी भविष्य की पढ़ाई, उड़ान तथा उड़ान सिस्टम से सम्बन्धित रहेगी. इस प्रकार सुब्रमणियम सर के वास्तविक अध्यापन (Real Teaching) की इस घटना ने मेरा भविष्य का कैरियर तय कर दिया था. यह घटना मेरे जीवन में मील का पत्थर (Turning Ponit) साबित हुई.’’
एक दिन शाम को क्लास के बाद कलाम साहब ने अपने अध्यापक महोदय से जानकारी हासिल की कि उन्हे उड़ान के सम्बन्ध में पढ़ने के लिये आगे कैसे पढ़ाई करनी चाहिये. तो उन्होने बताया कि आप पूरी मेहनत और काबलियत के साथ कक्षा आठवीं तथा हाई स्कूल तक की पढ़ाई करों उसके बाद उड़ान के सम्बन्ध में इन्जिनियंरिग कॉलेज में पढ़ाई करना. इस प्रकार अध्यापक जी की इस सलाह और पक्षियों की उड़ान अभ्यास को समझाने की इस घटना ने कलाम साहब के जीवन का लक्ष्य तय कर दिया. वे कहते है कि ’’इस घटना से मेरे जीवन को एक लक्ष्य तथा मिशन मिल गया.’’ कॉलेज में फिजिक्स का अध्ययन करने के बाद MIT में एरोनोटिकल इंन्जिनियंरिग का कोर्स किया. इस प्रकार मेरा जीवन एक रॉकेट इन्जिनियर, एरोस्पेस इंजिनियर तथा टैक्नोलोजिस्ट के रूप में तब्दील हो गया.
मित्रों, कलाम साहब के जीवन के आगे का पूरा सफर हम जानते हैं. इस प्रकार हम सबको, विशेष कर बच्चों को हमेशा आंख, कान व दिमाग खुला रखना चाहिये, ताकि जीवन में जब भी ज्ञान रूपी प्रकाश की कोई किरण आये तो कलाम साहब का अनुकरण करते हुए अपने जीवन का लक्ष्य सहीसमय पर निर्धारित कर लें
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