भीमराव अंबेडकर बम्बई विधान सभा में - Indian heroes

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Sunday 25 December 2016

भीमराव अंबेडकर बम्बई विधान सभा में



         

              बाबा साहब ने 24 फरवरी 1927 को बम्बई विधान परिषद में अपना पहला भाषण  बजट पर दिया । उन्होंने  कहा के मालिया और आयकर लगाते समय सरकार ये भूल जाती है कि आयकर केवल  उसी  समय देना पड़ता है  जब  आय हो । परंतु  भूमि  का  मालिया हर  किसी को देना पड़ता है, चाहे वो छोटा किसान हो अथवा बड़ा जागीरदार, फसल  हो या ना हो, परन्तु बेचारे किसान को तो मालिया देना ही पड़ता है | उन्होने कहा की यह अन्यायपूर्ण है |

             शिक्षा की मद का उल्लेख करते हुवे उन्होने कहा की शिक्षा ऐसी चीज़ है  जो प्रत्येक  व्यक्ति तक  पहुचनी  चाहिए| शिक्षा  सस्ती से सस्ती  हो , ताकि निर्धन  से  निर्धन व्यक्ति भी शिक्षा प्राप्त  कर सके | परिषद मे बाबा साहेब ने दलित  वर्गो के विद्यार्थियो के लिए हॉस्टिल  खोलने का सुझाव पेश किया|
परिषद को नशाबंदी  का सुझाव  देते हुए  बड़े जोरदार  ढंग से बताया कि शराबखोरी (नशा) राष्ट्र को तबाह करने वाला  तत्व है । अत इसे समाप्त करके उन्नत राष्ट्र का निर्माण किया जाए । चाहे नशाबंदी से कितने भी राजस्व की हानि क्यों न हो।      

               यूनिवर्सिटी सीनेट  पर बहस करते हुए माग की कि सीनेट में  पिछडे व  दलित वर्गो के  प्रतिनिधि  भी लिए  जाएं।अछूत लोगो  की सरकारी नौकरियों मे भर्ती और उन्नति संबंधी प्रश्न उठाते हुए परिषद का ध्यान बम्बईंके पुलिस कमिश्नर द्वारा दलितों को पुलिस  से भर्ती न  करने  की ओर  दिलाया । छोटी जातियो  की  समस्या  पर बोलते  हुए  बाबा साहब ने कृषि  में सहकारी पद्धति प्रचलित करने की वकालत की ।

           डा. आंबेडकर बम्बई विधान परिषद की प्रत्येक कार्य- वाही मे गहरी रुचि होते थे , परन्तु जहां  तक अछूत  लोगो की समस्याओं  का  संबंध है, वह  बहुत पैनी  दृष्टि  रखते थे । बड़े प्रभावशाली तथा तर्कपूर्ण तरीके से अपनी बात रखते थे।उनके भाषण और प्रस्ताव विद्वतापूर्ण और निर्णायक हुआ करते थे ।
 हालाँकि  डॉ. अंबेडकर  बम्बई  विधान  परिषद  के  मनोनीत सदस्य  थे, फिर  भी  वे  ब्रिटिश  सरकार  की  कड़ी  व  तीखी आलोचना करने से नहीं चूकते थे ।

          मजदूर महिलाओं को प्रसूति अवकाश देने सबंधी बिल के समर्थन में बोलते हुए कहा कि मैं चाहता हूँ कि माताओ को प्रसव के  समय  और उसके पश्चात  विश्राम के लिए  अवकाश मिलना चाहिए । इसी में राष्ट्र का हित है ।

           उस समय का कानून महारों से सरकारी कामों के लिए बेगार लेने (अथवा बिना मज़दूरी दिए या नाम मात्र की मजदूरी देकर जबरदस्ती  काम  करवाना)  की इजाजत देता था । यदि कोई (अछूत)महार मौजूद न हो तो उसके पिता या समान स्तर के किसी सदस्य को  बेगार पर ले जाया  जाता था। बेगार प्रथा ने महारों का गौरव ख़तम करके रख दिया था।वे जीवित ही मरे हुए के समान थे।उनका उत्साह, योग्यता और इच्छाएं सब कुछ बेगार ने दबोच रखी थीं । बेगार रूपी दासता की जंजीरे तोड़ने के लिए बाबा  साहब डॉ. अंबेडकर ने  विधान परिषद  में बिल पेश किया और पास कराया।

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