भीमराव अंबेडकर का अधूरी शिक्षा के लिए वापिस लंदन जाना - Indian heroes

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Saturday, 24 December 2016

भीमराव अंबेडकर का अधूरी शिक्षा के लिए वापिस लंदन जाना



     
            डॉ. अंबेडकर ने प्रोफ़ेसरी की नौकरी मे से कुछ रुपये बचाए । कुछ  सहायता  महाराजा  कोल्हापुर  से ली और पांच हजार  रुपये का  कर्जा अपने मित्र  नवल भटेना  से लिया और दूसरी बार  जुलाई 1920 से  कानून और अर्थशास्त्र  की पढ़ाई पूरी करनेके लिए लंदन रवाना हो गए।लन्दन पहुंचकर सितंबर 1920में कानून (बेरिस्टरी) व अर्थशास्त्र की पढाई में जुट गए। वे अठारह-अठारह  घंटे तक पढ़ते थे । डा. अंबेडकर शाम को या रात को जब  पुस्तकालय से  बाहर निकलते, तो पुस्तकों से तैयार  किए  नोट्स (टिप्पपियों) से उनकी  जेबें भरीं होती थीं। पुस्तकालय के बाद निवास स्थान पर अध्ययन आरंभ हो जाता था । काफी रात  होनेपर मस्तिष्क  तो फिर भी  साथ होता था, परंतु पेट नहीं । भूख  सताने लगती, परंतु खाने  को कुछ भी न होता था।  किसी  मित्र ने एक बार कुछ पापड़ दिए थे, जो डा. अंबेडकर ने संभाल कर रखे थे।एक कप चाय और एक पापड़ खाकर ही निर्वाह कर लेते और फिर पढाई में जुट जाते। पढ़ते-पढ़ते  कईं बार दिन चढ़ आता था । उनके  साथी  सुबह  गहरी नींद से  जागते, तो देखते कि डॉ. अंबेडकर अभी  भी अध्ययन में  लगे है । वे  उनसे प्रार्थना करते, “अब सो  जाओं अंबेडकर दिन चढने  वाला है ।” परंतु डा. अंबेडकर यह कह कर कि मेरे लिए  गरीबी  और समय के अभाव के  कारण आराम हराम है, पढ़ते ही रहते ।
           डॉ. अंबेडकर केवल आठ पाउंड से महीना भर गुजार लिया  करते थे । वे एक बुजुर्ग  महिला के  बोर्डिग  हाऊसनुमा स्थान  में रहते  थे और  यहीं पर  सुबह  का नाश्ता  व रात  का भोजन  करते  थे । डा. अंबेडकर  इंग्लैंड  में  न तो  कपडों पर व्यर्थ व्यय करते थे और न  बसों के किराए पर ही । यात्रा व्यय बचाने के लिए वे लंदन जैसे बड़े शहर में भी कई बार पैदल ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले जाया करते थे। उन्होंने कभी होटलों , सेर  सपाटे अथवा सिनेमा आदि  पर रुपये  व्यर्थ नहीं किए । दुनिया भर के इतिहास में डॉ. अबिडकर जैसे महापुरुष कम हो मिलते  है , जो भूखे  रहे हो,  जो  पूरे  कपडों  के लिए तरसते  रहे  हो और  जो  अनिवार्य  यात्रा  व्यय  के  लिए बिल बिलाते  रहे हो । भूख लगने पर चाय या कॉफी का एक प्याला पीकर  पेट की  आग को  ठंडा कर लेते । इच्छाओं को मारना, उमंगें दबाना और प्रत्येक  संकट को हँसते हँसते  गुजार  लेना, ऐसा ही था डॉ. अंबेडकर का  जीवनयापन | डॉ. अंबेडकर ने दृढ़ निश्चय कर रखा था, “या तो ध्येय को प्राप्त करके रहूँगा या फिर शरीर का विसर्जन कर दूँगा ।”
               इस प्रकार के संघर्षपूर्ण शिक्षण से डॉ. अंबेडकर ने 1921  में ‘ ब्रिटिश  भारत  में  साम्राज्य  पूंजी  का  प्रादेशिक विकेंद्रीकरण’  नामक  थीसिस पूरी  करके मास्टर आँफ साइंस की डिग्री हासिल की । 1923 से  उनके शोध  प्रबंध ‘रुपये की समस्या’ को  लंदन  यूनिवर्सिटी  द्धारा  स्वीकार  किए जाने पर उन्हें  डॉक्टर  आँफ साइन्स की  डिग्री प्रदान  की  गई। 1923 में ही डा. अंबेडकर बम्बई उतरे पीएचडी, एम.ए., एम.एस.सी, डी.एस.सी., बार-एट-लॉ बनकर ।

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