भीमराव अंबेडकर बौद्ध धम्म की शरण में - Indian heroes

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Thursday 29 December 2016

भीमराव अंबेडकर बौद्ध धम्म की शरण में




बाबा साहब ने 1935 में घोषणा की थी कि मैं हिंदू धर्म में पैदा अवश्य हुआ हूं परंतु हिंदू के रूप से मरूँगा नहीं । उन्होंने सभी धर्मों का भली-भीति अध्ययन किया और पाया कि केवल बोद्ध घर्म ही विज्ञान की कसौटी पर पूरा उतरता हे। ये धर्म समानता, न्याय व प्रज्ञा (ज्ञान) पर आधारित है। इसमें मानव प्रेम, अपनापन ब भाईचारा है । यह भ्रमो के जाल में नही फसाता है । इसमें कर्मकांड और पाखंड नहीं है । यह ना तो स्वर्ग या मुक्ति का प्रलोभन देता है और ना ही आत्मा और परमात्मा के चक्कर में उलझाता है। इसमें न तो देवी-देवताओं को खुश करना होता है और न ही देवी-देवताओं से डरना होता है । इसमें देवी-देवताओं द्वारा किसी अनिष्ट का भी कोई डर नहीं होता । इसमें तो केबल बुद्ध की शिक्षाओं को जीवन में उतार कर दुख और भय से मुक्त होकर ‘संपूर्ण मानव’ जीवन जीना होता है । उन्होंने पाया कि बौध धर्म ‘अत्त दीपो भव’ अर्थात अपना दीपक स्वय बनो का मंत्र देकर मनुष्य को अपने आप पर निर्भर होना सिखाता है।

उन्होंने घोषणा की कि वे 14 अक्तूबर 1956 को नागपुर शहर मे बुद्ध धर्म की दीक्षा लेंगे | नागपुर की ओर आने वाली गाडियो में रिकार्ड तोड़ भीड़ थी। लाखों लोग जैसे भी वे पहुँच सकते थे, धूमधाम से नागपुर पहुंचे। कई लोगों ने नागपुर पहुँचने के लिए अपने आभूषण तक बेच दिए। हज़ारो लोग ऐसे भी थे, जिनके पास रेल किराए तक के पैसे नहीं थे। फिर भी वे मीलों पद यात्रा करते हुए ‘भगवान बुद्ध की जय’, ‘बाबा साहब की जय’ के नारे लगाते हुए दीक्षा स्थल पर पहुँचे । लोग जत्थे बना-बनाकर आ रहे थे । वे इस प्रकार झूमते-गाते, यात्रा कर रहे थे, मानों जीवन की कोई अति प्रसन्न और महत्वपूर्ण यात्रा कर रहे हो । वे प्रसन्न क्यों न होते, यह दिन उनकी धार्मिक दासता के अंत का दिन था और मुक्ति – दिवस का महान पर्व | नारे लग रहे थे, ‘आकाश-पाताल एक करो बुद्ध धम्म स्वीकार करो ।’

14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में लगभग दस लाख लोगों के विशाल जनसमूह के सामने त्रिशरण-बुद्ध शरणं गच्छामि, धम्म्म शरणं गच्छामि, संघ शरणं गच्छामि । और पंचशील – (1) हिंसा न करना, (2) चोरी न करना, (3) झूठ न बोलना, (4) व्याभिचार न करना और (5) नशा न करना, मंत्रों का बाबा साहब ने पाली भाषा में उच्चारण किया ओर बौध धम्म में प्रवेश कर गए । 15 अक्तूबर 1956 को बाबा साहब ने स्वयं, लगभग 10 लाख अनुयायियों को बौद्ध धम्म की दीक्षा दी। डॉ. अंबेडकर ने दीक्षा लेने वालो को निम्नलिखित 22 प्रतिज्ञा भी करवाईं –
बाईस प्रतिज्ञाएं

मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश को कभी ईश्वर नहीं मानूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूंगा ।
मैं राम और कृष्णा को कभी ईश्वर नहीं मानूँगा, और न ही मैं उनकी पूजा करूंगा ।
3. मैं गौरी, गणपति आदि हिंदू धर्म के किसी देवी देवता को नहीं मानूँगा और न ही उनकी पूजा करूंगा ।
ईश्वर ने कभी अवतार लिया है, इस पर मेरा विश्वास नहीं |
मैं ऐसा कभी नहीं मानूँगा कि तथागत बुद्ध विष्णु के अवतार है । ऐसे प्रचार को मैं पागलपन और झूठा समझता हूँ |
मैं कभी श्राद्ध नहीं करूंगा और न ही पिंडदान करवाउँगा ।
मैं बौध धम्म के विरूद्ध कभी कोई आचरण नहीं करूंगा ।
मैं कोई भी क्रिया-कर्म ब्राह्मणों के हाथों से नहीं करवाऊंगा ।
मैं इस सीधान्त को मानूँगा कि सभी इंसान एक समान है ।
मैं समानता की स्थापना का यत्न करूंगा ।
मैं बुद्ध के आष्टांग मार्ग का पूरी तरह पालन करूंगा ।
12. मैं बुद्ध के द्वारा बताई हुई दस परिमिताओ का पूरा पालन करूंगा |
मैं प्राणी मात्र पर दया रखूँगा और उनका लालन-पालन करूंगा।
मैं चोरी नहीं करूंगा |
15. मैं झूठ नहीं बोलूँगा ।
मैं व्याभिचार नहीं करूंगा ।
मैं शराब नहीं पीऊंगा |
मैं अपने जीवन को बुद्ध धम्म के तीन तत्वो-अथार्त प्रज्ञा, शील और करूणा पर ढालने का यत्न करूंगा ।
मैँ मानव मात्र के विकास के लिए हानिकारक और मनुष्य मात्र को उच्च – नीच मानने वाले अपने पुराने हिंदू धर्म को पूर्णत: त्यागता हूँ और बुद्ध धम्म को स्वीकार करता हूँ |
यह मेरा पूर्ण विश्वास है कि गौतम बुद्ध का धम्म ही सही धम्म हैं ।
मैं यह मानता हूँ कि अब मेरा नया जन्म हो गया है ।
मैं यह प्रतिज्ञा करता हूँ कि आज से मैं बुद्ध धम्म के अनुसार आचरण करूँगा ।
बाब साहब के धर्म परिवर्तन पर हिंदू नेताओं ने बहुत शोर-गुल किया । बाबा साहब ने स्पष्ट किया कि हिंदुओं को असल चिंता इस बात की हैं कि उनका मल कौन उठाएगा? सफाई आदि का काम कौन कंरेगा? उनके मृत पशु कौन उठाएगा ? उनकी बेगार कौन करेगा? आदि ।
आज देर से ही सही, बाबा साहब के प्रयत्नो के फलस्वरूप, भारत सरकार ने अधिनियम जारी किए है कि बुद्ध धम्म अपनाने वाले दलित वर्ग के लोगों को आरक्षण की सुविधा पूर्व की भाँति दी जाती रहेगी ।
बाबा साहब के प्रयासो का ही फल है कि बोद्ध धम्मचक्र आज भारत के राष्टीय ध्वज मे शान से लहरा रहा हैं और भारत की मुद्रा मे अशोक स्तंभ के शेर और संसद भवन के मुख्य द्वार पर अंकित ‘सत्यमेव जयते’ भारत पर बौध धम्म के आधिपत्य का उदघोष कर रहा है ।

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