आचार्य जीवतराम भगवानदास (जे.बी) कृपलानी गांधीवादी नेता थे | एक बार की बार है जब वह रेलगाड़ी में यात्रा कर रहे थे | जिस डिब्बे में वह बैठे थे उसी डिब्बे में एक दंपत्ति भी बैठा था, लेकिन वे आचार्य कृपलानी को नहीं जानते थे, वे उनसे अनभिज्ञ थे | उन्होंने आचार्य जीवतराम (कृपलानी) से पूछा, ‘आपकी जाती क्या है ?’
उनकी जिज्ञासा को शांत करते हूए आचार्य कृपलानी बोले, मेरी एक जाती हो तो बताऊँ | मेरी तो कई जातियां है | इस पर पति-पत्नी असमंजस में पड़ गए और उन्होंने पूछा, ‘ इसका का क्या मतलब हुआ ?’ कृपलानी बोले, ‘अधिकतर जब में जूते साफ़ करता हूँ तो चर्मकार हो जाता हूँ |
जब में मेरे कपड़ों की धुलाई करता हूँ तो कपडे धोने वाला (धोभी) बन जाता हूँ | जब में कॉलेज में अध्यापन के लिए जाता हूँ तो ब्राह्मण हो जाता हूँ, और जब तनख्वाह का हिसाब लगाने बैठता हूँ तब वाणिक बन जाता हूँ. अब आप ही बताए मेरी कौन सी जाती हुई ?’ कृपलानी के जवाब को सुनकर वह पति-पत्नी निरुत्तर ही नहीं हुई बलि शर्म भी महसूस करने लगे |
हम एक ही जीवन में, एक ही दिन में कार्य तो अनेक करते हैं लेकिन जाती एक बताते हैं | कृपलानी जी ने बिलकुल सही उत्तर दिया | हमें भी इस बात पर थोड़ा सोचना चाहिए | जो स्वांस ब्राह्मण लेता है वही स्वांस एक चमार भी लेता है, अगर परमात्मा की नज़रों में हम सब के लिए कोई भेद होता तो वह भी तो हम सब के लिए तरह-तरह के इंतजाम कर सकता था | लेकिन उसने तो सभी को एक ही नज़रों से देखा हमने ही सभी को जातियों में बदल दिया |
इंसानो को तो छोड़ो हमने तो भगवानो पर भी लेबल लगा रखें है की ये ऐसे भगवान है, या वैसे भगवान हैं | हमारी दृष्टि ही ऐसी है हम हर चीज को भिन्न-भिन्न करके देखते हैं | जब की ईश्वर ने हम सबको एक भाव से बनाया है उसका प्रेम सबके लिए समान हैं | हमें भी सभी लोगों को एक दृष्टि से देखना चाहिए | अब जब भी आप कही दो-लोगों को जातिवाद के ऊपर बात करते देखे तो उनको यह कहानी जरूर सुनाइएगा | — धन्यवाद दोस्तों |
Read:अहंकार छोड़िये और सीखना शुरू कीजिए : Ego Hindi Moral Story
उनकी जिज्ञासा को शांत करते हूए आचार्य कृपलानी बोले, मेरी एक जाती हो तो बताऊँ | मेरी तो कई जातियां है | इस पर पति-पत्नी असमंजस में पड़ गए और उन्होंने पूछा, ‘ इसका का क्या मतलब हुआ ?’ कृपलानी बोले, ‘अधिकतर जब में जूते साफ़ करता हूँ तो चर्मकार हो जाता हूँ |
जब में मेरे कपड़ों की धुलाई करता हूँ तो कपडे धोने वाला (धोभी) बन जाता हूँ | जब में कॉलेज में अध्यापन के लिए जाता हूँ तो ब्राह्मण हो जाता हूँ, और जब तनख्वाह का हिसाब लगाने बैठता हूँ तब वाणिक बन जाता हूँ. अब आप ही बताए मेरी कौन सी जाती हुई ?’ कृपलानी के जवाब को सुनकर वह पति-पत्नी निरुत्तर ही नहीं हुई बलि शर्म भी महसूस करने लगे |
हम एक ही जीवन में, एक ही दिन में कार्य तो अनेक करते हैं लेकिन जाती एक बताते हैं | कृपलानी जी ने बिलकुल सही उत्तर दिया | हमें भी इस बात पर थोड़ा सोचना चाहिए | जो स्वांस ब्राह्मण लेता है वही स्वांस एक चमार भी लेता है, अगर परमात्मा की नज़रों में हम सब के लिए कोई भेद होता तो वह भी तो हम सब के लिए तरह-तरह के इंतजाम कर सकता था | लेकिन उसने तो सभी को एक ही नज़रों से देखा हमने ही सभी को जातियों में बदल दिया |
इंसानो को तो छोड़ो हमने तो भगवानो पर भी लेबल लगा रखें है की ये ऐसे भगवान है, या वैसे भगवान हैं | हमारी दृष्टि ही ऐसी है हम हर चीज को भिन्न-भिन्न करके देखते हैं | जब की ईश्वर ने हम सबको एक भाव से बनाया है उसका प्रेम सबके लिए समान हैं | हमें भी सभी लोगों को एक दृष्टि से देखना चाहिए | अब जब भी आप कही दो-लोगों को जातिवाद के ऊपर बात करते देखे तो उनको यह कहानी जरूर सुनाइएगा | — धन्यवाद दोस्तों |
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