भीमराव अंबेडकर द्वारा बहिसकृत हितकारिणी सभा का गठन - Indian heroes

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Thursday, 29 December 2016

भीमराव अंबेडकर द्वारा बहिसकृत हितकारिणी सभा का गठन


                   शिक्षा के दौरान उनकी लिखी थीसीसो में उनकी निर्भिक्ता व स्पष्टवादिता ने  ब्रिटिश साम्राज्यवादियों  को  बेचैन कर दिया । लंदन में विद्यार्थियों की  यूनियन में दिए गए ‘भारत में एक उत्तरदायी सरकार के दायित्व’ नामक एक लेख ने लंदन के शिक्षा क्षेत्रो में हलचल मचा दी और कहा जाने लगा कि डॉ. अंबेडकर  एक  क्रांतिकारी भारतीय हैं । इस प्रकार के  अनेकों उदाहरणों से वह अपने आपको एक सच्चा राष्ट्र भक्त प्रमाणित कर चुके थे । जिस डॉ. अंबेडकर ने सारा जीवन अछूतपन की विभिषिका को झेला था, वो इस  अभिशाप को  भारत भूमि से मिटाने में भला जैसे उदासीन रह सकता था ।

         मार्च 1924 में डा. अंबेडकर ने परमुखतः समाज सुधार का काम शुरू किया।20 जुलाई 1924 को उनके प्रयासों द्वारा बम्बई मे “बहिस्क्रित हितकारिणी सभा’ स्थापित की गई । डॉ. अंबेडकर एक ऐसे नेता के रूप मे उभरे  थें, जिन्हें स्वयं संकटों व मुसीबतों का सामना करना पडा था।इसलिए उनकी आवाज मे वेदना  थी , एक  कसक  और तड़प थी , “गुलामों  को  यह आभास करा दो कि वह गुलाम है, फिर वह विद्रोह कर देगा ।” यह नारा डॉ. अंबेडकर  ने ही बुलंद  किया था । डॉ. अंबेडकर की दर्द भरीं आवाज ने दुखी व दलित वर्ग को जागृत कर दिया । उनमें चेतना आने लगी । अंबेडकर ने ऐसी भाषा मे दलित व पिछड़े वर्ग  को  जागृत किया के उनके  मस्तिष्क  में खलबली मच गई ।

                 उन्होंने ललकारा, “तुम्हारे चेहरों की दयनीय दशा देखकर और तुम्हारी हताश-निराश आवाजें सुन कर मेरा हृदय फटा  जाता हे। सदियों से  तुम लोग  अत्याचारों की  चक्की में पीसे जा रहे हो,फिर भी तुम्हें साहसहीनता एवम् निज-विश्वास-शून्यता त्यागने का  विचार नहीं आता । तुम  लोग पैदा होते ही मर क्यों नहीं  जाते? तुम  अपने दयनीय, घृणित जोर तिरस्कार पूर्ण जीवन से  पृथ्वी  का बोझ क्यों बढाते हो ? यदि तुम  नया जीवन नही ढाल सकते और अपनी दशा नहीं बदल  सकते, तो इससे मरना कहीं श्रेष्ठ है। वास्तव से भोजन,वस्त्र,आवास प्राप्त करना और अपना जीवन स्तर ऊंचा उठाना  तुम्हारा जन्मसिद्ध अधिकार है । यदि  तुम  सम्मान का  जीवन चाहते हो, तो तुम्हें निज सहायता (स्वयं की  सहायता,  जो सर्वश्रेष्ठ  सहायता है), पर विश्वास करना होगा ।

         डॉ. अंबेडकर अहिंसा मेँ विश्वास रखते थे, परंतु अहिंसा और दब्बुपन में फर्क  करते थे । उन्होंने  दलित  वर्ग  मे  चेतना औंर साहस पैदा करने  के लिए सन् 1924  में  समता  सैनिक दल की स्थापना की ।

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