बालक भीम जब पाँच वर्ष के हुवे तो पिता सूबेदार रामज़ीराव सकपाल उन्हे एक ब्राह्मण प्रिन्सिपल के स्कूल मे लेकर गये | प्रिन्सिपल साहेब गोल मटोल सुंदर बालक को देखकर खुश हुवे|उन्होने प्रवेश पत्र भरना शुरू किया|जाती के कालम मे लिखने के लिए उन्होने सूबेदार रामज़ीराव सकपाल जी से जाती पूछी | रामज़ीराव सकपाल जी ने बड़े संकोच से कहा, ‘म..हा..र..’|उस समय भारतवर्ष मे छुआछूत का तांडव जारी था | अछूत के लिए शिक्षा के द्वार बंद थे| प्रिन्सिपल ने गुस्से मे प्रवेश पत्र के टुकड़े- टुकड़े कर दिए और चपरासी को बुलाकर आदेश दिया की इसको धक्के देकर बाहर निकाल दो… इसकी हिम्मत कैसे हुई यहाँ तक आने की | चपरासी ने आदेश का तुरंत पालन किया और रामज़ीराव सकपाल को धक्के दे दे कर बाहर निकालने लगा | विवश बालक भीम कभी अपने पिता की ओर भागकर पिता को बचाने का प्रयास करता, तो कभी स्कूल के दरवाजे की ओर भागता | इस बीच बचाव मे बालक भीम स्कूल की सीढ़ियो
से मूह के बल बाहर जा गिरा, जिससे उसका मूह लहू लुहान हो गया | इस निर्दयी घटना से भीमराव के पिता बहुत दुखी हुवे | बालक भीम ने माता पिता से सवाल किया की हमे स्कूल से धक्के देकर क्यू बाहर निकाला गया ? क्या मैं और बालको जैसा नही था? आहत माता पिता क्या जवाब देते | केवल मन मसोस कर रह गये | लेकिन रामज़ीराव सकपाल बालक भीम को पढ़ाने के लिए द्रढ संकल्प थे | वे बालक भीम को एक अंग्रेज के स्कूल मे दाखिला दिलाने के लिए लेकर गये |यहाँ उनको दाखिला तो मिला, परंतु उन पर पाँच शर्ते लगा दी गयी :-
1.बिछाने के लिए भीमराव अपने घर से टाट लाएगा, जबकि बाकी बालको को टाट स्कूल से मिलता था |
2.भीमराव दूसरे बालको से लगभग 10 फीट दूर रहेगा |
3.भीमराव ब्लैकबोर्ड के निकट नही जाएगा |
4.भीमराव मटको मे से खुद अपने हाथ से पानी निकाल कर नही पिएगा | चपरासी या कोई स्वर्ण बालक ही मटके से पानी निकाल कर भीमराव को पिलाएगा |
5. भीमराव अन्य बालको के साथ खेलो मे भाग नही लेगा |
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