बाबा साहेब डॉ आंबेडकर मानते थे की बौद्ध धम्म का प्रचार-प्रसार करना ही मानवता की सच्ची सेवा है… - Indian heroes

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Tuesday 17 January 2017

बाबा साहेब डॉ आंबेडकर मानते थे की बौद्ध धम्म का प्रचार-प्रसार करना ही मानवता की सच्ची सेवा है…




बाबा साहब आंबेडकर द्वारा रचित  महान धम्म-ग्रन्थ “भगवन बुद्धा और उनका धम्म”  में समयबुद्धा द्वारा लिखित प्रकथन का एक अंश यहाँ प्रस्तुत है:

नमो तस्य भगवतो अर्हतो समं सम बुद्धस्य

……….मैं —————— के संस्थापक श्री ————— जी को उनके धम्म एव मिशन में योगदान के लिए बहुत बहुत धन्यवाद देना चाहूँगा| मैं उनको इस महान बौद्ध धम्म ग्रन्थ में मेरी रचना “बहुजन क्षमता और जिन्दगी के नियम” के चंद अध्याय सारांश को प्रकथन के रूप में प्रकाशित करने के लिए धन्यवाद् देता हूँ|

ये मेरे लिए गौरव की बात है की मुझे  युगपुरुष महाज्ञानी बहुजन मसीहा एव आधुनिक भारत के उत्क्रिस्ट शिल्पकार बाबा साहेब डॉ आंबेडकर के विश्व चर्चित ऐतिहासिक एव महानतम धम्म-ग्रन्थ “भगवन बुद्धा और उनका धम्म” का प्रकथन लिखने का अवसर प्राप्त हुआ |बौद्ध धम्म साहित्य बहुत ज्यादा विस्तृत है साथ ही उसमें मूल धम्म से विरोधाभासी बातें यदा कदा मिल जातीं हैं जो उपासक को पथभ्रष्ट कर देती हैं|हम समझ सकते हैं की दो से ढाई हज़ार सालों में ऐसा भी समय आया होगा जब कुछ विरोधीयों ने इसमें मिलावट कर दी हो| बाबा साहब ने मूल धम्म को संचित कर इस ग्रन्थ को रचकर व्यस्त जनता के लिए बौद्ध धम्म को सही रूप में समझने का सटीक साहित्य उपलब्ध करवाया है|जब मैं अन्यत्र उपलब्ध धम्म साहित्य पड़ता हूँ तब मुझ खुद महसूस हुआ की एक ऐसे संचित एव स्थापित धम्म साहित्य की जरूरत थी|बाबा साहेब का मानव सभ्यता पर ये उपकार बहुत सराहनिय है उनको कोटि कोटि नमन| बाबा साहेब डॉ आंबेडकर ने कई सालों तक  विभिन्न धर्मों का अध्ययन किया और बौद्ध धम्म को चुना| वे बखूबी  जानते थे की  बौद्ध धम्म से न केवल बहुजनों का उद्धार होगा अपितु समस्त मानवता का कल्याण होगा| वे मानते थे की बौद्ध धम्म का प्रचार-प्रसार करना ही मानवता की सच्ची सेवा है,उन्होंने कहा था की “अगर में शोषित समाज से न भी होता तो भी एक अच्छा इंसान होने के नाते मैं सर्व जीवा हितकारी बौद्ध धम्म ही चुनता|”

बाबा साहब ने बौद्ध धम्म में लौटना यूं ही नहीं स्वीकार किया था, वो केवल बुद्ध की अच्छाई से ही प्रभावित नहीं हुए थे बल्कि उनको पता था की उनकी अनुपस्थिति मे बुद्ध धम्म  ही हजारों वर्षों से शोषित रहे बहुजनों को मुक्ति दिला सकता है, उन्हे पहले की तरह फिर बुद्धि, बल, ऐश्वर्य न्याय और शक्ति  के शिखर पर पहुचा सकता है।वो जानते थे की अन्य धर्मों में जाने के बावजूद बहुजनों का भला नहीं हो पायेगा ये तो केवल स्वामी बदलना होगा, गुलामी तो जस की तस रहेगी|बहुजनों का भला तो केवल बौद्धिक विकास से ही संभव है और यही बौद्ध धम्म का मुख्य लक्ष्य होता है| बौद्ध धम्म ने ये काम बहुत पहले भी किया था,बौद्ध धम्म  ने सारी वर्णव्यवस्था ध्वस्त कर दी थी। बुद्ध ने संघ मे सबको समान स्थान दिया, बुद्ध की ही क्रांति का नतीजा था की उनके मृत्यु के 100 साल के अंदर ही मूल भारतवासी बहुजन राजा बनने लगे थे , नन्द वंश पहले बहुजन राजाओं का वंश था। मौर्य वंश भी बहुजन राजाओं का वंश था जिनके राज में अखंड भारत ने अपना सबसे स्वर्णिम समय देखा है। इसी समय के भारत को ही लोग ‘सोने की चिड़िया’ या विश्व गुरु नाम से संबोधित करते हैं|ये बहुजनों की आज़ादी का काल था जब भारत के शाषन की बागडोर भारतवासियों के हाथों में थी| बाबा साहब को शायद अंदाज़ा  था की उनकी अनुपस्थिति मे बौद्ध धम्म ही उनका स्थान पूरा कर सकता है, और कोई नहीं। उनका सारा संघर्ष बौद्ध मार्ग से प्रेरित था।परिणाम हम आज देख रहे हैं धम्म अपनाने की कुछ ही सालों में बहुजन न केवल अपनी दुर्दशा सुधार पा रहे हैं बल्कि शाषक बनने योग्य होते जा रहे हैं|बौद्ध मूल्यों पर आधारित भारत का संविधान रचकर बाबा साहब ने भारतियों को न्याय और समानता का कानूनी अधिकार दिलाया|जरा सोच कर देखिये की अगर कट्टर धार्मिक भावना रखने वालों में से किसी ने संविधान बनाया होता तो आज भारत एकजुट रह पाता? क्या न्याय मिल पाता?…

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