उस समय महाराष्ट्र मे छुआछत ज़ोरो पर थी| बालक भीम को स्कूल मे सभी छात्रो से दूर बैठना पड़ता है और बैठने के लिए टाट भी अपने घर से लाना पड़ता था| सूबेदार रामज़ीराव सकपाल सेना मे क्रिकेट के अच्छे खिलाड़ी रह चुके थे | भीम को भी क्रिकेट खेलने का शौक था | परंतु अध्यापक ने उन्हे अन्य छात्रो के साथ खेलने की अनुमति नही दी | स्कूल मे प्यास लगने पर यदि चपरासी या कोई अन्य स्वर्ण विद्यार्थी दूर से भीम के हाथो मे पानी डाल देता तो वे पानी पी लेते अन्यथा सारा-सारा दिन प्यासे ही रहते थे | एक साधारण प्याऊ से पानी पीने के कारण भीम के अत्यधिक पिटाई हुई थी | नाई भी भीमराव के बाल नही काटते थे|अतः भीमराव की बहन ही केँची से उनके बालो की आडी-टेढ़ी कटाई कर देती थी | जिस से भीम कई दिन तक उपहास का पात्र बना रहता | परन्तु इसके अलावा चारा भी क्या था ?
बंबई मे भीमराव की सबसे बड़ी बहन की ससुराल थी |भीमराव एक दिन अपनी बहन से मिलने चल पड़े| रास्ते मे थकान हुई | वह सड़क के किनारे एक चाय की दुकान मे घुस गये और बेंच पर बैठ कर डरते-डरते चाय का ऑर्डर दिया | चाय वाले को कुछ शक सा हो गया था | उसने भीमराव को घूर कर देखा और चीख कर बोला ‘ ‘क्यों रे ? क्या जात है तेरी ? इस सवाल से जैसे भीमराव का खून जम ही गया।उसने हक्लाकर बताया, ‘ ‘म. . .. .म. . .महार’ हैं । महार नीच जात १ तेरी हिम्मत कैसे ? वह चीखा और लपक कर भीमराव को बैच से धक्का देकर नीचे नाली में गिरा दिया और गंदी गालियां देते हुए कहा, “तेरी सहीं जगह वहीं है! अछूत गंदी नली के गंदे कीडे’ हैं।भीमराव नाले से रोते रोते बाहर निकले औऱ सिसकते हुए घर पहुंचे।
बाल्यकाल में भीम को पग-पग पर हिंदू धर्म की छुआछूत की विभीषिका झेलनी पडी । इससे बालक के कोमल मन पर जो घाव लगे वो जीवन भर रिसते रहे पुत्र इसी कारण बाबा साहब हिंदू धर्म के घोर विरोधी बन गए । उन्होंने घोषणा की, “मैं हिंदू धर्म में पैदा हुआ ये मेरे बस की बात नहीं थी, परंतु मैं हिंदु धर्म में मरूँगा नहीं, ये मेरे बस की बात है । क्योकि यहीं वह धर्म है जो आदमी-आदमी में असमानता के भाव को पैदा करता है | बम्बई जैसे शहर में पेंशन के पचास रुपये से घर चलाना सूबेदार रामजीराव सकपाल के लिए बहुत कठिन हो रहा था । अतः उन्होंने सतारा के निकट गोरे गाँव में एक प्राइवेट नौकरी कर ली और वहीँ रहने लगे ।
एक दिन भीमराव, उनके बडे भाई आनन्द राव और एक छोटा भांजा गोरे गांव की ओर रवाना हुए । भीम ने अपने की सूचना सूबेदार रामज़ीराव सकपाल को पत्र द्धारा पहले ही दे दी थी । परंतु किसी कारणवश वह पत्र सूबेदार
जीं को न मिल सका।जब बच्चे मैसूर रेलवे स्टेशन पररेलगाडी से पहुंचे, तो अपने किसी भी व्यक्ति को स्टेशन पर न देखकर चितिंत हो गए । गोरे गांव तो जाना ही था । तीन बालक, शाम का वक्त और अंजान नगर, जिस पर बेलगाडी वालों व तांगे वालों ने उन्हें अछूत महार जाति का होने के कारण अपनी गाडी में बैठाने से इंकार कर दिया | अत एक गाडीवान दुगने किराये और इस शर्त पर तैयार हुआ क़ि वह स्वयं, उनके-साथ नहीं बैठेगा, वह पैदल ही चलेगा और बच्चों में से ही किसी को स्वयँ गाड़ी चलानी पडेगी । आनंद राव ने गाडी चलाई । शाम से लेकर आधी रात तक भूखे व प्यासे ही बच्चे यात्रा करते रहे । जब भी इन बच्चों ने पानी मांगा, तो सवर्ण हिंदू लोगो ने गंदे पानी के जोहड की ओर संकेत किया । इस दिन भीम को अनुभव हुआ” क़ी वह एक ऐसी जाती से संबंध रखते है जिसे स्वच्छ पानी पीने का भी अधिकार नही है | भीमराव स्कूल मे अपमान सह ही रहे थे | परंतु इस घटना ने उनके दिल को हिला कर रख दिया | उन्हे भली प्रकार से पता लग गया की अछूत लाखो की संख्या मे किस प्रकार पशु से भी बुरी अवस्था मे जीवन गुज़ार रहे है | संभवतः बाल काल मे जो दुर्व्यवहार इनके साथ हुआ उसी के फलस्वरूप भीमराव का मन हिंदू धर्म के प्रति कड़वाहट से भर गया, क्योकि हिंदू धर्म में मनुष्य का मूल्यांकन उसके जन्म और जात के आधार पर ही किया जाता है |
** “सभी गुणों से हीन होने पर भी ब्राह्मण सदा पूजा के योग्य है और ज्ञान बुधि से भरपूर होने पर भी शूद्र सम्मान के लायक नहीं है । ” (तुलसीदास)
** “अगर कोई केवल जन्म से ही ब्राह्मण हो और विद्या आदि से सर्वथा शून्य हो, तो भी वह राजा को उपदेश दे सकता है।” (मनुस्मृति 8/ 20)
हाई स्कूल में भी भीमराव से दुर्व्यवहार किया गया । ऊंची जाति के विद्यार्थी अपने रोटियों वाले डिब्बे ब्लैकबोर्ड के पीछे रखा करते थे । एक दिन अध्यापक ने भीमराव को बोर्ड पर बुलाया । भीमराव अभी बोर्ड की ओर चले ही थे किं विद्यार्थियों ने शोर मचा दिया, ‘ “ठहर जाओं, हमें रोटियों के डिब्बे उठा लेने दो । ” जब तक विद्यार्थियों ने रोटियों के डिब्बे नहीं उठा लिए उन्हें बोर्ड पर नहीं जाने दिया गया ।
सभी कठिनाइयां झेलते हुए भीमराव खूब मन लगा कर पढ़ रहे थे, एक दिन एक ब्राह्मण अध्यापक ने भीमराव को निरुत्साहित करने के लिए चिढ़ कर कहा, “अरे तू तो महार है, तू पढ़कर क्या करेगा” भीमराव यह अपमान सहन न कर सके । वह बब्बर शेर की भाँति अध्यापक पर गरज पड़े, ‘ सर पढ़ लिखकर में क्या करूँगा, यह पूछना आपका काम नहीं है । यदि पुन: आपने मेरी जाति का उल्लेख करके मुझे चिड़ाया, तो मैं कह देता हूँ कि इसका परिणाम अच्छा नहीँ होगा ।” भीमराव बचपन से ही स्वाभिमानी और निर्भीक थे ।
भीमराव को हाइस्कूल मेँ एक और चोट लगी जिसे वे सारे जीवन भर नहीं भुला सके। भीमराव संस्कृत पढ़ना वाहते थे। परंतु स्कूल के अध्यापकों ने उनकी जाति के कारण संस्कृत विषय पढ़ने की अनुमति न दी । विवश होकर भीमराव को फ़ारसी पढ़नी पडी । बाद में बाबा साहब अंबेडकर ने अपने प्रयत्न व परिश्रम से संस्कृत भाषा पढी और वे संस्कृत के विद्वान बने ।
बंबई मे भीमराव की सबसे बड़ी बहन की ससुराल थी |भीमराव एक दिन अपनी बहन से मिलने चल पड़े| रास्ते मे थकान हुई | वह सड़क के किनारे एक चाय की दुकान मे घुस गये और बेंच पर बैठ कर डरते-डरते चाय का ऑर्डर दिया | चाय वाले को कुछ शक सा हो गया था | उसने भीमराव को घूर कर देखा और चीख कर बोला ‘ ‘क्यों रे ? क्या जात है तेरी ? इस सवाल से जैसे भीमराव का खून जम ही गया।उसने हक्लाकर बताया, ‘ ‘म. . .. .म. . .महार’ हैं । महार नीच जात १ तेरी हिम्मत कैसे ? वह चीखा और लपक कर भीमराव को बैच से धक्का देकर नीचे नाली में गिरा दिया और गंदी गालियां देते हुए कहा, “तेरी सहीं जगह वहीं है! अछूत गंदी नली के गंदे कीडे’ हैं।भीमराव नाले से रोते रोते बाहर निकले औऱ सिसकते हुए घर पहुंचे।
बाल्यकाल में भीम को पग-पग पर हिंदू धर्म की छुआछूत की विभीषिका झेलनी पडी । इससे बालक के कोमल मन पर जो घाव लगे वो जीवन भर रिसते रहे पुत्र इसी कारण बाबा साहब हिंदू धर्म के घोर विरोधी बन गए । उन्होंने घोषणा की, “मैं हिंदू धर्म में पैदा हुआ ये मेरे बस की बात नहीं थी, परंतु मैं हिंदु धर्म में मरूँगा नहीं, ये मेरे बस की बात है । क्योकि यहीं वह धर्म है जो आदमी-आदमी में असमानता के भाव को पैदा करता है | बम्बई जैसे शहर में पेंशन के पचास रुपये से घर चलाना सूबेदार रामजीराव सकपाल के लिए बहुत कठिन हो रहा था । अतः उन्होंने सतारा के निकट गोरे गाँव में एक प्राइवेट नौकरी कर ली और वहीँ रहने लगे ।
एक दिन भीमराव, उनके बडे भाई आनन्द राव और एक छोटा भांजा गोरे गांव की ओर रवाना हुए । भीम ने अपने की सूचना सूबेदार रामज़ीराव सकपाल को पत्र द्धारा पहले ही दे दी थी । परंतु किसी कारणवश वह पत्र सूबेदार
जीं को न मिल सका।जब बच्चे मैसूर रेलवे स्टेशन पररेलगाडी से पहुंचे, तो अपने किसी भी व्यक्ति को स्टेशन पर न देखकर चितिंत हो गए । गोरे गांव तो जाना ही था । तीन बालक, शाम का वक्त और अंजान नगर, जिस पर बेलगाडी वालों व तांगे वालों ने उन्हें अछूत महार जाति का होने के कारण अपनी गाडी में बैठाने से इंकार कर दिया | अत एक गाडीवान दुगने किराये और इस शर्त पर तैयार हुआ क़ि वह स्वयं, उनके-साथ नहीं बैठेगा, वह पैदल ही चलेगा और बच्चों में से ही किसी को स्वयँ गाड़ी चलानी पडेगी । आनंद राव ने गाडी चलाई । शाम से लेकर आधी रात तक भूखे व प्यासे ही बच्चे यात्रा करते रहे । जब भी इन बच्चों ने पानी मांगा, तो सवर्ण हिंदू लोगो ने गंदे पानी के जोहड की ओर संकेत किया । इस दिन भीम को अनुभव हुआ” क़ी वह एक ऐसी जाती से संबंध रखते है जिसे स्वच्छ पानी पीने का भी अधिकार नही है | भीमराव स्कूल मे अपमान सह ही रहे थे | परंतु इस घटना ने उनके दिल को हिला कर रख दिया | उन्हे भली प्रकार से पता लग गया की अछूत लाखो की संख्या मे किस प्रकार पशु से भी बुरी अवस्था मे जीवन गुज़ार रहे है | संभवतः बाल काल मे जो दुर्व्यवहार इनके साथ हुआ उसी के फलस्वरूप भीमराव का मन हिंदू धर्म के प्रति कड़वाहट से भर गया, क्योकि हिंदू धर्म में मनुष्य का मूल्यांकन उसके जन्म और जात के आधार पर ही किया जाता है |
** “सभी गुणों से हीन होने पर भी ब्राह्मण सदा पूजा के योग्य है और ज्ञान बुधि से भरपूर होने पर भी शूद्र सम्मान के लायक नहीं है । ” (तुलसीदास)
** “अगर कोई केवल जन्म से ही ब्राह्मण हो और विद्या आदि से सर्वथा शून्य हो, तो भी वह राजा को उपदेश दे सकता है।” (मनुस्मृति 8/ 20)
हाई स्कूल में भी भीमराव से दुर्व्यवहार किया गया । ऊंची जाति के विद्यार्थी अपने रोटियों वाले डिब्बे ब्लैकबोर्ड के पीछे रखा करते थे । एक दिन अध्यापक ने भीमराव को बोर्ड पर बुलाया । भीमराव अभी बोर्ड की ओर चले ही थे किं विद्यार्थियों ने शोर मचा दिया, ‘ “ठहर जाओं, हमें रोटियों के डिब्बे उठा लेने दो । ” जब तक विद्यार्थियों ने रोटियों के डिब्बे नहीं उठा लिए उन्हें बोर्ड पर नहीं जाने दिया गया ।
सभी कठिनाइयां झेलते हुए भीमराव खूब मन लगा कर पढ़ रहे थे, एक दिन एक ब्राह्मण अध्यापक ने भीमराव को निरुत्साहित करने के लिए चिढ़ कर कहा, “अरे तू तो महार है, तू पढ़कर क्या करेगा” भीमराव यह अपमान सहन न कर सके । वह बब्बर शेर की भाँति अध्यापक पर गरज पड़े, ‘ सर पढ़ लिखकर में क्या करूँगा, यह पूछना आपका काम नहीं है । यदि पुन: आपने मेरी जाति का उल्लेख करके मुझे चिड़ाया, तो मैं कह देता हूँ कि इसका परिणाम अच्छा नहीँ होगा ।” भीमराव बचपन से ही स्वाभिमानी और निर्भीक थे ।
भीमराव को हाइस्कूल मेँ एक और चोट लगी जिसे वे सारे जीवन भर नहीं भुला सके। भीमराव संस्कृत पढ़ना वाहते थे। परंतु स्कूल के अध्यापकों ने उनकी जाति के कारण संस्कृत विषय पढ़ने की अनुमति न दी । विवश होकर भीमराव को फ़ारसी पढ़नी पडी । बाद में बाबा साहब अंबेडकर ने अपने प्रयत्न व परिश्रम से संस्कृत भाषा पढी और वे संस्कृत के विद्वान बने ।
No comments:
Post a Comment